SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग उर्दू में ही इस विषय पर भी कहा गया है छुरी का, तीर का, तलवार का तो घाव भरा । लगा जो जख्म जबाँ का रहा हमेशा हरा ॥ पद्य में यथार्थ कहा गया है । वस्तुतः छुरी, तीर या तलवार का शरीर पर घाव हो जाय तो वह थोड़े समय में भर जाता है, किन्तु जबान का जख्म हमेशा हरा रहता है, यानी वह कभी नहीं मिटता । परिणाम यही होता है कि आस्रव होता रहता है तथा संवर की बारी ही नहीं आती क्योंकि कटु एवं क्रूर शब्दों का प्रयोग कहने वाले और सुनने वाले के बीच में द्वेष एवं बदले की भावना जगा देता है, जो कभी-कभी तो जीवन भर नहीं मिटती चाहे अनेकों संवत्सरी या क्षमापन के दिन निकल जायँ । संवत्सरी के दिन लोग अपने मित्रों या सम्पूर्ण गाँव वालों से क्षमा याचना कर लेंगे किन्तु जिससे वैर-विरोध होगा उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखेंगे । इस प्रकार जिस दिन के पीछे संसार के समस्त प्राणियों के प्रति करुणा रखने का तथा सच्चे हृदय से जगत के समस्त जीवों से क्षमा-याचना करके और क्षमा प्रदान करके हृदय को पूर्णतया कषायरहित कर लेने का रहस्य छिपा हुआ है वह पूर्णतया निरर्थक चला जायेगा । क्षमा याचना कैसी हो ? अरे भाई ! सच्ची क्षमा-याचना तो उसी से की जाती है, जिसके प्रति अपराध किया गया हो या जिसका दिल दुखाया गया हो । पर उसी से क्षमा न माँग कर मित्र स्नेहियों से खमा-खमा कहने पर वह तोता - रटन्त के अलावा और क्या होगा ? लाभ तो उससे रंचमात्र भी होने वाला नहीं है । वह तभी होगा, जबकि अपने विरोधी या दुश्मन से क्षमा-याचना की जाय और वह भी इस शर्त पर कि 'क्षमा' शब्द केवल जबान पर ही न हो वरन् हृदय से निकले उद्गार हों । अनेक बार हम देखते हैं कि यहाँ धर्म - स्थानक में भी लोग समझा-बुझाकर दो कट्टर विरोधी व्यक्तियों को आपस में क्षमा याचना करने के लिए बाध्य करते हैं और लोक-लज्जा के कारण वे किसी तरह हाथ जोड़कर 'क्षमा' शब्दों का उच्चारण भी कर लेते हैं । परन्तु वे शब्द केवल जबान से निक लते हैं, अन्तर्मानस से नहीं उभरते । आप अच्छी तरह जान लीजिए कि मात्र जबान से कहे गये वे शब्द रंचमात्र भी हृदय को पवित्र नहीं बनाते और उनसे तनिक भी लाभ नहीं होता, क्योंकि महत्त्व शब्दों की बजाय भावना का अधिक और अधिक ही क्या पूर्णतया होता है। माता-पिता अपने बच्चों को भूल कर देने पर गालियाँ देते हैं और यहाँ तक भी कह देते हैं - 'तू मर जाए तो पाप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy