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________________ अपना रूप अनोखा वह कण-कण बन भूमण्डल में कहीं समाई भाई । इसी तरह यह मिटने वाली नूतन काया पाई || शैशव अन्य अन्य यौवन है, है वृद्धत्व निराला । सारा ही संसार सिनेमा के से दृश्यों वाला ॥ इन भंगुर भावों से न्यारा ज्योतिपुञ्ज चेतन है । मूर्ति रहित चैतन्य ज्ञानमय निश्चेतन यह तन है | पद्यों में शरीर के अन्यत्व पर बड़ी सरल भाषा में बताया गया है कि जीव ने अपने पूर्व जन्म में जिस शरीर को वर्तमान में जैसे सावधानी से रखते हैं, उसी प्रकार रखा होगा और नाना प्रकार के वस्त्राभूषणों से सुसज्जित किया होगा । किन्तु यहाँ आते समय उसे छोड़ा और उसकी राख होकर इसी भूमण्डल में बिखर गई होगी । पर यहाँ आते ही पुनः नई देह प्राप्त की है, नया ही शैशव और यौवन पाया है तथा वृद्धत्व भी आयेगा । किन्तु इसके पश्चात् ही पुनः यह देह नष्ट होकर कण-कण के रूप में कहीं समा जायेगी और फिर से कोई दूसरा शरीर प्राप्त होगा । इस स्थिति को देखकर लगता है कि यह संसार वास्तव में नाटक या सिनेमा के समान है, जिसमें पात्रों को सदा नया रूप दे देकर रंगमंच पर लाया जाता है । कभी वे राजा बनते हैं, कभी रंक, कभी वीर योद्धा के रूप में सामने आते हैं और कभी कायर या डरपोक बनकर पीठ दिखाते हैं । कभी उनके शरीर पर कीमती वस्त्राभूषण होते हैं और कभी तन पर भगवा वस्त्र और गले में रुद्राक्ष की माला । ठीक इसी प्रकार संसार रूपी रंगमंच पर भी जीव नाना प्रकार के चोले पहनकर आता है । वह कभी रोता है, कभी हँसता है तथा कभी पूजा-भक्ति करके भगवान को रिझाता है । २१६ पर बन्धुओ, यह भली-भाँति समझ लो कि जो भी नवीन देह या चोला वह धारण करता है, निश्चय ही जड़ होता है और किसी भी समय नष्ट हो जाता है । पर जो नष्ट नहीं होता वह केवल निराकार, ज्ञानमय एवं चैतन्य आत्मा ही है जोकि अद्भुत ज्योति का पुंज है । ― इसी बात को आगे और भी स्पष्ट रूप से समझाया गया हैहो जल से उत्पन्न जलज ज्यों जल से ही न्यारा है । त्यों शरीर से भिन्न चेतना को भी निर्धारा है ॥ तो दुनिया की अन्य वस्तुएँ कैसे होंगी ? समझ निराले आत्मरूप को मत कह मेरी-मेरी ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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