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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
चाहिए कि मैं पूर्ववत् धनी हूँ। सच्चा धन रुपया-पैसा नहीं होता वरन् धर्म होता है।"
सौदागर के इन शब्दों को सुनकर गाँव वालों का हृदय गद्गद हो गया और वे उसकी मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हुए लौट आए ।
बन्धुओ, ऐसा धर्म और समभाव वही रख सकते हैं जो कि संसार की वास्तविकता को भली-भाँति समझ लेते हैं । यही 'संसार-भावना' भाने का परिणाम है । जो भी मानव यह भावना अपने जीवन में सतत बनाए रखेंगे वे इहलोक और परलोक में सुखी बनेंगे ।
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