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सामान सौ बरस का, कल की खबर नहीं
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देखकर खुशी से फूला नहीं समाता । किन्तु वह स्वप्न कितनी देर का होता है ? कुछ क्षणों के पश्चात् ही जब नींद खुलती है तो उसका सम्पूर्ण राज्य-पाट विलीन हो जाता है।
पूज्यश्री अमीऋषिजी महाराज ने इस सम्बन्ध में एक बड़ा सुन्दर और पद्यमय उदाहरण दिया है । वह इस प्रकार है
एक महामूढ़ अविवेकवंत स्वपन में,
हवो अति चतुर पण्डित सरदार है। सिद्धांत पुरान वेद न्याय तर्क ग्रन्थ कोष,
काव्य श्लोक व्याकरण छंद को उच्चार है ।। बहोत्तर कला विद्या चउदे निपूण भयो,
करि-करि वाद जीत्या पण्डित अपार है। जाग्यो तब अक्षर न याद रह्यो एक तस,
अमीरिख कहे तैसो जाणिये संसार है ।। दृष्टांत बड़ा हास्यप्रद किन्तु शिक्षाप्रद भी है। कहते हैं कि एक महामूर्ख एवं अविवेकी व्यक्ति ने स्वप्न में देखा कि वह बड़ा भारी विद्वान एवं पण्डितों का सिरमौर बन गया है। समस्त वेद, पुराण, न्याय एवं तर्क शास्त्र पढ़कर व्याकरण के अनुसार काव्य, श्लोक एवं छन्दों का सुन्दर एवं शुद्ध उच्चारण कर रहा है। इतना ही नहीं बहत्तर कलाओं एवं चौदह विद्याओं में भी निपुणता प्राप्त कर चुका है तथा अनेक विद्वानों को वाद-विवाद में परास्त कर विजयी बन गया है।
इतना होने पर स्वाभाविक ही था कि वह अपार हर्ष एवं गर्व से भर गया, किन्तु अफसोस कि स्वप्न समाप्त होते ही उसे अपने ज्ञान के भण्डार में से एक भी अक्षर याद नहीं रहा । कवि का कथन है कि ठीक उस मूर्ख के स्वप्न के समान ही यह संसार भी है । फर्क इतना ही है कि उस मूढ़ ने स्वप्न में जो कुछ भी किया, उसका कोई दुष्परिणाम उसके जागने पर सामने नहीं आया, किन्तु इस संसार में मानव जो-जो भी अधर्म या पाप-कर्म करता है, उनका फल उसे इस स्वप्नवत् संसार के मिटने पर भी भोगना पड़ता है। इसलिए उसको बहुत ही सावधान रहकर अपने जीवन को निर्दोष बनाना चाहिए। जो ऐसा नहीं कर पाते हैं, अर्थात् अपने जीवन को धर्ममय नहीं बनाते हैं वे निश्चय ही अन्त में पश्चात्ताप करते हैं।
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