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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
___ "बहन, मैं उन्हें पहचानता कहाँ हूँ ? वहाँ तो अनेक व्यक्ति होंगे, भला उनके बीच मैं कबीर जी को कैसे खोज पाऊँगा ?"
कबीर जी की पत्नी ने आगन्तुक की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा"भाई ! उन्हें खोजना तनिक भी कठिन नहीं होगा । तुम ध्यान से देखोगे तो पता चल जाएगा कि श्मशान के अन्दर तो उपस्थित सभी व्यक्तियों के मुँह लटके हुए होंगे और वैराग्य की झलक उन पर दिखाई देगी। किन्तु वहाँ से बाहर आते ही सब हँसी-खुशी के साथ वार्तालाप करते हुए लौटेंगे । केवल कबीर जी के चेहरे पर ही स्थायी गम्भीरता, शान्ति, वैराग्य एवं मध्यस्थ भाव होगा । इस पहचान से तुम फौरन उन्हें जान लोगे।" ___ वास्तव में ही यह बात सोलहों आने सत्य है । मैं भी लोगों से सुनता हूँ कि नेत्रों के सामने मुर्दा रखा होने पर और अपने हाथों से उसे जलाने पर भी व्यक्तियों के मन में विरक्त भावना या अन्य कोई फर्क नहीं आता । श्मशान में कुछ समय ज्यादा लगने पर कई व्यक्ति तो इधर-उधर होकर बीड़ी-सिगरेट पी आते हैं या मृत प्राणी अगर स्त्री होती है तो उसके जीवित पति के विवाह की बातें करने लग जाते हैं। कई बार तो विवाह-सम्बन्ध श्मशान में ही करीबकरीब पक्के हो जाते हैं, केवल दस्तूर करना बाकी रहता है। यह कार्य वहाँ इसलिए सरल होता है कि बहुत से व्यक्ति श्मशान में इकट्ठ होते हैं और वहाँ अन्य कुछ कार्य नहीं होता अतः ऐसे उत्तम समय का वे लोग उत्तम सदुपयोग कर लेते हैं। दूसरे जिनकी लड़कियाँ होती हैं, वे यह सोचते हैं कि हमारे बात करने से पूर्व ही अन्य बेटी वाला यह रिश्ता तय न कर ले । इसलिए पत्नी के फूंके जाने से पूर्व भी दूसरा विवाह पक्का हो जाता है।
ऐसी बातें सुनकर मन को बड़ा आश्चर्य और खेद होता है कि मानव मृत्युग्रस्त प्राणी को देखकर भी जागृत नहीं होता। जागृत से अभिप्राय चक्षु-इन्द्रिय के खुलने से नहीं, अपितु विवेक और ज्ञान के नेत्रों के खुलने से है। उन्हीं के द्वारा आत्मा की दशा दिखाई देती है और उन्हीं के द्वारा कर्म-फल का सच्चा अन्दाज लगाया जा सकता है। अपने ज्ञान-रूपी नेत्रों को खोलने पर ही व्यक्ति 'अनित्य भावना' के सच्चे स्वरूप को समझ सकता है तथा संसार की वास्तविकता को जानकर इससे निरासक्त रहता हुआ आत्म-साधना में संलग्न होता है।
अनित्य भावना ही मनुष्य को महसूस करा सकती है कि यह संसार ओस बिन्दु के समान, वर्षाकाल में दिखाई देने वाले इन्द्रधनुष के समान तथा समुद्र में आने वाले तूफान के समान अस्थायी और स्वप्नवत् है। स्वप्न में मानव नाना प्रकार के दृश्य देखता है, तथा कभी-कभी तो अपने आपको राजा बन गया
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