________________
जाए सखाए निक्खन्ते १५५ मलीन या बुरे नहीं हो सकते अपितु आत्मा के लिए कल्याणप्रद बनते हैं। कहा भी है
गुण सुट्टियस्स वयणं, घयपरिसित्तुव्व पावओभाइ । गुणहीणस्स न सोहइ, नेहविहूणो जह पईवो ॥
-वृहत्कल्पभाष्य २४५ अर्थात्-गुणवान व्यक्ति का वचन घृतसिंचित अग्नि की तरह तेजस्वी होता है, जबकि गुणहीन व्यक्ति का वचन तेलरहित दीपक की तरह तेज और प्रकाश से शून्य होता है।
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति सदा गुण ग्रहण करने की होनी चाहिए भले ही वे किसी साधारण प्राणी में ही क्यों न हों ? अभी मैंने आपको कहा है कि दुर्गुणी और निंदक व्यक्ति तो दान देने और तपस्या करने को भी मूर्खता कहते हैं, जिसके कारण धन कम होता है और शरीर क्षीण हो जाता है ।
किन्तु हमें यह विचार करना है कि धन तो क्षणभंगुर है ही, अगर अपने हाथ से दिया जायेगा तो पुण्य के रूप में अनेक गुना बढ़कर परलोक को सुखद बनायेगा । और इसी प्रकार यह शरीर है, चाहे कितनी भी सावधानी क्यों न रखो, एक दिन नष्ट हो जायेगा पर अगर इसके द्वारा तपस्या की जायेगी तो न जाने कितने पूर्व संचित कर्मों का क्षय होगा। ऐसा ही सभी सद्गुणों के विषय में कहा जा सकता है और पूर्णतया यथार्थ भी है। इसलिए श्रद्धाविहीन व्यक्तियों के कथनमात्र से ही हमें सद्गुणों को दुर्गुण और शुभ-क्रियाओं को अशुभ नहीं मान लेना चाहिए । ___ गुणहीन व्यक्ति जैसा कहेगा और करेगा, उसका परिणाम वह स्वयं ही भोगेगा। शास्त्र में बताया भी है
चहि ठाणेहिं संते गुणे नासेज्जाकोहेणं, पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए मिच्छित्ताभिणिवेसेणं।
-स्थानांगसूत्र ४/४ अर्थात्-क्रोध, ईर्ष्या-डाह, अकृतज्ञता और मिथ्या-आग्रह इन चार दुर्गुणों के कारण मनुष्य के वर्तमान गुण भी नष्ट हो जाते हैं। ___तो बन्धुओ, आप समझ गये होंगे कि जो व्यक्ति अपने हृदय में अभी-अभी बताये गये चार अवगुणों को स्थान देता है वह औरों का बुरा तो नहीं भी कर सके, किन्तु अपना बुरा तो कर ही बैठता है । इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org