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________________ सच्ची गवाही किसकी ? १३५ कि मेरे कर्मों की निर्जरा में रानी सहायक बनी है। शरीर का क्या, उसे तो आज नहीं कल, और कल नहीं तो किसी दिन छोड़ना ही था। वस्तुतः यह संसार बड़ा विचित्र है। मानव जिन सम्बन्धियों को अपना समझता है और उनके लिए नाना प्रकार के पाप करने से भी पीछे नहीं हटता, वे ही सगे-सम्बन्धी और प्राणों से अधिक प्यार करने का दावा करने वाली स्त्री भी किस दिन बदल जाएगी यह नहीं कहा जा सकता । जब तक अपनी स्वार्थपूर्ति होती है, तभी तक सम्बन्धी प्रेम और मित्रता का दावा करते हैं, किन्तु जिस क्षण उनकी स्वार्थ-पूर्ति में कमी आ जाती है, तुरन्त कबूतर के समान आँखें फेर लेते हैं। इसीलिए सुन्दरदासजी ने कहा है--- बैरी घर माँहि तेरे जानत सनेही मेरे, दारा, सुतवित्त तेरे खोंसी-खोंसि खायेंगे। औरहु कुटुम्बी लोग लूटे चहुँ ओर ही तें, मीठी-मीठी बात कहि तो लपटायेंगे । संकट परेगो जब कोई नहीं तेरो तब, ___ अन्त ही कठिन, बाकी बेर उठि जायेंगे। सुन्दर कहत, तासे झूठो ही प्रपंच सब, सपने की नाईं यह देखत बिलायेंगे । कहते हैं- "अरे भोले व्यक्ति ! जिनको तू अपने माता-पिता, स्त्री-पुत्र, भाई-बहन एवं मित्र-स्नेही समझता है, वे सब तो तेरे ही घर में रहने वाले तेरे शत्रु हैं; केवल मोह के कारण वे मुझे अपने हितैषी लगते हैं । __ "जब तक तेरे पास धन रहेगा और तू इन सभी के स्वार्थों की पूर्ति करता रहेगा, तब तक सब मीठी-मीठी बातें करते हुए तुझसे लिपटेंगे, प्यार करेंगे तथा तेरा धन छीन-छीन कर मौज करते हुए खाएँगे। ___"किन्तु याद रख, जब भी तुझ पर कोई संकट आएगा या तू इनकी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर सकेगा, तब इन सब में से एक भी तेरा साथ नहीं देगा और मृत्यु के समय तो सब पास से भी उठ-उठकर चले जाएँगे । इसलिए मैं कहता हूँ कि संसार का सब प्रपंच मिथ्या है और मरने पर तो स्वप्न की तरह बिला जाएगा।" जो बुद्धिमान पुरुष इस बात को समझ लेते हैं वे फिर संसार में रहते हुए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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