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आध्यात्मिक दशहरा मनाओ !
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अर्थात्-जो व्यक्ति धर्म में दृढ़निष्ठा रखता है, वस्तुतः वही बलवान है और जो धर्म में उत्साहहीन है, वह वीर एवं बलवान होते हुए भी न वीर है, न बलवान है।
राम धर्म से ओतप्रोत या उससे अनन्य थे इसीलिए रावण पर विजय पा सके और रावण धर्म को भुला बैठा था तथा अपनी शारीरिक एवं भौतिक शक्तियों के चमंड में चूर हो गया था अत: निर्बल साबित हुआ। वस्तुतः धर्म की महत्ता के विषय में शब्दों के द्वारा कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि उसका महत्त्व अवर्णनीय होता है। धर्मग्रन्थ भी यही कहते हैं कि :
संकल्प्य कल्पवृक्षस्य, चिन्त्यं चिन्तामणेरपि । असंकल्प्यमसंचिन्त्यं, फलं धर्मादवाप्यते ॥
-आत्मानुशासन २२ अर्थात्-कल्पवृक्ष से संकल्प किया हुआ और चिन्तामणि से चिन्तन किया हुआ पदार्थ प्राप्त होता है, किन्तु धर्म से असंकल्प्य एवं अचिन्त्य फल मिलता
है।
___ इसलिए बंधुओ ! हमें धर्म को जीवनसात् करके आज विजयादशमी के दिन से ही अधर्म पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ कर देना चाहिए । पूज्यपाद श्री त्रिलोक ऋषिजी महाराज ने अपनी कविता के अंत में कहा हैधर्म रूप राम अपने बंधु सत्य एवं पत्नी सुमति को साथ लेकर निर्वाण पद रूपी अयोध्या में आए जहाँ किसी प्रकार का भय, दु:ख या शोक नहीं था। आज भी आप लोग कहते हैं कि हमारे यहाँ पहले राम-राज्य था पर अब वह नहीं है। राम-राज्य से अभिप्राय देश में अनीति, अधर्म, छल, बेईमानी और किसी भी प्रकार के दुःख, शोक या भय का न होना है। तो, राम की अयोध्या को कवि ने निर्वाणपुरी के सदृश बताया है तथा राम की कथा को बड़े सुन्दर ढंग से आध्यात्मिक विषय पर घटाते हुए मनुष्य को धर्म के द्वारा अधर्म पर विजय प्राप्त करने की सद्प्रेरणा दी है।
जो भव्य पुरुष ऐसा करेगा यानी राम के समान अपने मन, वचन एवं कर्म में धर्म को रमा लेगा वह निश्चय ही मिथ्यात्व एवं आश्रव रूपी रावण पर विजय प्राप्त करता हुआ एक दिन शिवपुर की प्राप्ति करेगा।
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