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आनन्द प्रवचन : सातवा भाग
रूपी शस्त्र धारण किये हुए था। राग-द्वेष रूप बड़े-बड़े राक्षस उसके अंगरक्षक थे। अपनी सेना को लेकर वह भी राम-लक्ष्मण का मुकाबला करने आ गया।
रावण के सामने आने पर, शील रूपी रथ पर बैठकर धीरज रूपी धनुष सत्यरूपी लक्ष्मण ने अपने हाथ में लिया और अपने बड़े भाई राम से बोले
"भैया ! पहले मुझे ही रावण से निबटने की आज्ञा दें । अगर जरूरत होगी तो आपको कष्ट दूंगा, अन्यथा नहीं।" यह कहते हुए लक्ष्मण रावण का मुकाबला करने के लिए आगे बढ़े ।
रावण ने सामने लक्ष्मण को देखकर अज्ञान-रूपी शक्ति-चक्र लक्ष्मण को मारने के लिए भेजा, पर लक्ष्मण वासुदेव थे और वासुदेव किसी के मारने से नहीं मरते अतः चक्र उनकी प्रदक्षिणा करके उन्हीं के हाथ में आ गया । अब लक्ष्मण ने उसी चक्र को ज्ञान-चक्र में परिवर्तित करके रावण पर चलाया और उससे रावण का अन्त हो गया।
- आप जानते ही हैं कि सेनाएँ लड़ती हैं पर विजयश्री राजा का वरण करती है, अर्थात् विजय राजा की ही कहलाती है। धर्मरूपी राम के प्रति अटूट निष्ठा रखते हुए और परोक्ष रूप से उन्हीं का स्मरण करते हुए सत्यरूप लक्ष्मण ने रावण को मारा और उनकी सेना राम एवं लक्ष्मण की विजयघोषणा करती हुई लौटी । होना ही यही था क्योंकि धर्मशास्त्र कहते हैं'सत्यमेव जयते' सत्य की सदा जय होती है।।
तो दस मुंह, बीस भुजाएँ एवं अपार शक्ति रखने वाला महाबली रावण हार गया क्योंकि उसके दस मिथात्व रूपी मुंह एवं बीस आश्रव रूपी भुजाएँ थीं, विषय-वासना एवं अभिमान रूपी इन्द्रजीत तथा मेघवाहन पुत्र थे और चार कषाय रूपी चतुरंगिणी सेना थी। और थी कुमतिरूपी बहन सूर्पणखा, जिसके भड़काने से उसने सीता का हरण किया था। इस प्रकार सम्पूर्ण दुर्गुणों को धारण करने वाला तथा ऐसा ही परिवार एवं अपनी सेना रखने वाला रावण देह से कितना भी शक्तिशाली होने पर भी साक्षात् धर्म रूप राम एवं सत्य रूपी लक्ष्मण के समक्ष कैसे टिक सकता था ? शास्त्र भी हमें बताते हैं :
धम्ममि जो दढमई, सो सूरो सत्तिओ वीरो य । ण हु धम्मणिरुस्साहो, पुरिसो सूरो सुवलिओऽवि ॥
-सूत्र० नि० ६०
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