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आध्यात्मिक दशहरा मनाओ! ६३ - शक्तिशाली रावण भी जब साधु के वेश में सीता से भिक्षा की याचना करने गया तो उस रेखा का उल्लंघन नहीं कर सका और बोला
"देवी ! साधु बँधी हई भिक्षा नहीं लेता। अगर देना है तो इस रेखा से बाहर आकर दो।"
सीता भोली और सरल थी। उसने यह बात सत्य समझी और साधु कहीं बिना भिक्षा के न लौट जाय इस डर से तुरन्त 'लक्ष्मण-रेखा' से बाहर आ गई। ठीक उसी समय रावण ने बलपूर्वक उसे उठाया और लंका में ले आया। ___ जब राम और लक्ष्मण लौटकर आए तो देखा कि कुटिया खाली है, वहाँ सीता नहीं है । राम अत्यन्त दुखी हुए और इधर-उधर सीता को खोजने लगे। पर वहाँ आसपास सीता कहाँ थी? वह तो समुद्र पार लंका में पहुंच चुकी थी। इतना अवश्य था कि रावण का एक नियम था- 'किसी स्त्री की इच्छा के बिना उससे बलात्कार नहीं करना ।" और इस नियम के कारण उसने सीता की अशोक-वाटिका में रख दिया तथा उसे समझाने के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न प्रारम्भ किये । स्वयं तो बार-बार आकर अपने ऐश्वर्य के अनेक प्रलोभन देकर उसे समझाता ही, अपनी रानी मन्दोदरी को भी उसने इस कार्य के लिए दबाव डाला । पर सीता महासती थी, वह कहाँ रावण की ओर देखने वाली थी ? वह तो अपने शीलधर्म पर अडिग बनी रही।
इधर सीता की खोज में सन्तोष रूपी सुग्रीव ने, पाँचों यमरूपी जाम्बवान ने और सुमन जिसे कहा जा सकता है उस हनुमान ने राम की सहायता की। सु-मन ही सुमति को पा सकता है अतः हनुमान सीता की खोज में सफल हो गये और लंका में आग लगाकर अपनी शक्ति का चमत्कार दिखाते हुए लौट आए । पर आकर बोले-“भगवन् ! माता सीता का पता तो लगाकर आया हूँ, पर वह रावण की कैद में है जो कि अत्यन्त बलवान है।" __यह जानकर राम ने दान, शील, तप एवं भावरूपी चतुरंगिणी सेना तैयार की और अपनी सेना के आगे नीति-रूपी पताका फहराती हुई रखी। सेना लेकर वे रावण पर विजय प्राप्त करके सीता को लाने के लिए रवाना हुए। सेना में स्वाध्याय का गम्भीर घोष हो रहा था। ___इधर जब रावण को राम के सेना सहित आने के समाचार मिले, तो वह भी शक्ति में कम नहीं था अतः उसने भी अपनी चतुरंगिणी सेना सजाई जो क्रोध, मान, माया और लोभ को मिलाकर बनायी गयी थी। सेना की पताका थी कुविचार यानी कुध्यान और अपकीर्तिरूपी नगारा बजाया जा रहा था। ... स्वयं मिथ्यामोहरूपी रावण कुशील के रथ में बैठा था तथा सप्त व्यसन
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