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आगलो अगन होवे, आप होजे पाणी
संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया हैनद्यश्च नार्यश्च सदृशप्रभावाः
समानि कूलानि कुलानि तासाम् । तोयैश्च दोषश्च निपातयन्ति
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कहते हैं--नदियों का और नारियों का प्रभाव समान ही होता है। नदियों के जिस प्रकार दो कूल यानी किनारे होते हैं उसी प्रकार नारियों के दो कुल अर्थात् घने होते हैं । कूल और कुल में केवल हृस्व और दीर्घ का ही अन्तर है ।
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आगे बताया है कि नदी जब बाढ़ आदि के कारण दोषपूर्ण हो जाती है तो वह अपने ही दोनों किनारों को गिराती है और नारी जब दोषयुक्त बनती है तो वह अपने पीहर एवं ससुराल इन दोनों घरानों को गिराती है अर्थात् उन्हें कलंकित कर देती है ।
पर जिस प्रकार नदी निर्दोष रहने पर अनेकानेक प्राणियों को जीवन धारण करने के लिए जल प्रदान करती है तथा लाखों एकड़ जमीन को सींचकर प्राणियों की उदरपूर्ति में सहायक बनती है उसी प्रकार नारी भी सदाचार एवं शील आदि उत्तम गुणों को धारण करके अपने दोनों कुलों को सुशोभित करती है तथा प्रशंसनीय बनाती है । सुसन्तान को और तीर्थंकर तक को भी जन्म देकर वह रत्नकुक्षी कहलाने लगती है ।
इसीलिए कवि बहनों को शिक्षा देने के लिए 'क' 'ख' आदि अक्षरों के आधार पर एक-एक सुन्दर सीख का निर्माण करते हैं । सर्वप्रथम 'क' के द्वारा वे यह कहते हैं कि कन्त की यानी पति की आज्ञा का पालन करो। अगर पति पूर्व में जाये और पत्नी पश्चिम में, अर्थात् दोनों के विचार परस्पर विरोधी हों तो घर-गृहस्थी की गाड़ी चलनी असम्भव हो जाती है और इसके विपरीत अगर विचारों में समानता हो तो घर स्वर्ग बनता है । इसके अलावा अगर स्त्री बुद्धिमान, विवेकी, चतुर एवं अपने पति पर अखण्ड स्नेह रखती है तो वह विरोधी विचार रखने वाले अविवेकी पति को भी सन्मार्ग पर ले आती है । एक ऐतिहासिक कथा से आपको यह बात स्पष्ट समझ में आ जायेगी ।
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पति की आज्ञा का पालन
अकबर के शासनकाल में राजा मानसिंह आमेर में राज्य करते थे । वे अकबर के प्रिय पात्र थे और आनन्दपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । राजा मानसिंह के तीन रानियाँ थीं। उनमें जो सबसे बड़ी थी, वह अपनी कुलीनता और
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