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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
पर कुछ व्यक्ति हमारे आचार व्यवहार में दोषों को देखने के लिए आ जाते हैं और कुछ तो प्रवचन सुनने के लिए आये हुए लोगों के जूते, चप्पल या मौका मिले तो दान- पात्र ही उठा ले जाने की फिराक में आते हैं । पर ऐसा करने वालों को क्या उसका फल भगतना नहीं पड़ता ? निश्चय ही भुगतना होता है । बुरा कार्य करने का परिणाम भला बुरा कैसे नहीं होगा ।
फकीर साहब ने यही कहा था- 'मेरे पास था ही क्या ? ओढ़ाने वाले ने या, तू ले जाता है ले जा । जिसने शरीर दिया है वह मुझे नंगा नहीं फिरायेगा और तेरे पास भी यह चादर हमेशा नहीं रहेगी । इसलिए कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति क्रोध करे, गाली दे या किसी प्रकार से अपमानित करे तो भी प्रत्युत्तर में क्रोध नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार के भी दुर्वचन नहीं कहना चाहिए । साधु के लिए तो क्रोध का सर्वथा निषेध है ही पर चतुर्विध संघ के लिए भी यही
कल्याणकर है ।
यहाँ मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि धर्म-भावना हमारे भाइयों की अपेक्षा बहनों में अधिक होती है । त्याग और तपस्या में भी वे पुरुषों से कई कदम आगे रहती हैं । इसलिए उनसे सम्बन्धित एक गाथा कह रहा हूँ
सुन्दर हित को देऊँ मैं सीख, हृदय में धारजे ए । दुर्लभ उत्तम तन को पाय, कुल उजियालजे ए । काका, कंथ आज्ञा को नित तू पाल जो रे खा-खा, क्षमा धरीने रीजे, ग गा गाल कलह तज दीजे घाघा घर में सुजस लीजे, न-ना नरम वेण तज कठिन मत उच्चारजे ए ।
यह पद्य क- का बत्तीसी का है और इसमें " बहनो ! मैं तुम्हें अत्यन्त सुन्दर शिक्षा दे रहा हूँ, धारण कर लेना । क्योंकि मानव जन्म प्राप्त होना प्राप्त हो ही गया है तो इसे सार्थक करके अपने कुल की शोभा बढ़ाना |
बहनों के लिए कहा गया हैइसे अपने हृदय में भली-भाँति बड़ा कठिन है । और जब यह
हम सभी जानते हैं कि मानव शरीर पाकर भी जहाँ पुरुष उत्तम गुणों और संस्कारों को धारण करके भी एक ही कुलं को उज्ज्वल बनाता है वहाँ बहनें अगर संस्कारशील हों और उत्तम आचार-विचारों को धारण करने वाली हों तो वे अपने मातृकुल एवं श्वसुरकुल, दोनों को ही सुशोभित करती हैं ।
अभिप्राय यही है कि अपने ससुराल और पीहर, दोनों ही घरानों को उज्ज्वल नाना या कलंकित करना नारियों पर निर्भर है ।
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