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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
करता क्योंकि उसके हृदय में प्रवाहित होने वाला प्रेम का पावन स्रोत सूख जाता है । पुत्र पिता का, भाई भाई का, गुरु शिष्य का एवं मित्र मित्र का शत्रु बन जाता है | बहुत समय से चला आने वाला सहज और स्वाभाविक प्रेम भी घोर द्वेष में परिणत हो जाता है । परिणाम यह होता है कि क्रोधी व्यक्ति अपने जीवन काल में भी निन्दा का पात्र बना रहता है और मृत्यु के पश्चात् भी लोगों के द्वारा नफरत पूर्वक स्मरण किया जाता है ।
यमराज ने लौटा दिया तो ?
एक राजा अत्यन्त क्रूर और क्रोधी था । जरा-जरा से अपराध पर वह अपने राज्य के निवासियों को कठोर से कठोर दण्ड दिया करता था और कभी-कभी तो निरपराध व्यक्तियों पर भी अपना क्रोध उतारा करता था । उसके राज्य का प्रत्येक व्यक्ति राजा के डर से काँपा करता था और प्रयत्न करता था कि कभी वह राजा की दृष्टि के सामने न पड़ जाय ।
अन्त में समय आने पर राजा की मृत्यु हुई और उसका पुत्र राजा बना । बड़े धूमधाम से नये राजा की सवारी शहर के प्रत्येक मार्ग से गुजरी और फिर राजमहल के द्वार पर आई । महल का द्वारपाल अत्यन्त चतुर एवं दूरदर्शी था । उसने विचार किया कि कहीं नया राजा भी अपने पिता के समान क्रोधी और अन्यायी न बन जाय इसलिए राज्य - सिंहासन पर बैठने से पहले उसे कुछ सीख देनी चाहिए ।
अपनी योजना के अनुसार राजा के हाथी से उतरकर राजमहल की ओर बढ़ते ही वह फूट-फूटकर रोने लगा । राजा अभी नवयुवक ही था और सत्ता के गर्व से परिचित नहीं था अतः वह द्वारपाल को रोते देखकर नरमी से बोला
"क्यों द्वारपाल ! मेरे क्रोधी पिता के मरने पर और मेरे राजा बन जाने पर तो राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को प्रसन्नता हो रही है । किन्तु तुम फूट-फूटकर रो रहे हो । क्या तुम्हें मेरे राजा बनने की खुशी नहीं है ?"
द्वारपाल यह सुनते ही तुरन्त राजा के चरण छूकर हाथ जोड़ते हुए बोला"नहीं मेरे हुजूर ! आपके राजा बनने की तो मुझे असीम खुशी है पर मुझे याद आ रहा है कि आपके पिता बड़े महाराज जब भी महल में पधारते थे, तभी मुझे बिना बजह दो-चार चाबुक लगा दिया करते थे ।"
राजा यह सुनकर हँस पड़ा और कहने लगा - " मेरे भाई ! वह समय तो गया, मेरे अन्यायी पिता अब जीवित नहीं हैं, फिर तुम क्यों रोते हो ?"
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"आप ठीक कह रहे हैं महाराज ! पर मैं यह सोच रहा हूँ कि आपके पिता को यमराज उनके अन्यायों की सजा दे रहे होंगे तो उन्हें महाराज किस प्रकार सहन करते होंगे ?"
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