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आनन्द प्रवचन | छठा भाग आ जाये तो बड़ी-बड़ी इमारतें भी गिर जाती हैं। इसी प्रकार आग लग जाने पर बड़े-बड़े सुन्दर मकान खण्डहर बन जाते हैं ।
यह जीवन-रूपी मकान भी कषाययुक्त कुआचरण से नष्ट होता है तथा सदाचरण से सदैव अक्षत एवं शुद्ध बना रहता है। जिस प्रकार मकान को आग और पानी दोनों से बचाया जाता है, उसी प्रकार चारित्र-रूपी मकान को भी दो चीजों से बचाना पड़ता है । प्रथम है कषाय रूपी आग । इस आग से मकान को बचाना जरूरी है पर अगर व्यक्ति यह विचार कर ले कि हम इस आग को नहीं लगने देंगे, और केवल इतना ही विचार कर निष्क्रिय बैठा रहे तब भी काम नहीं चलेगा । ठीक है कि बुरे कार्य नहीं किये, पर अच्छे कार्य भी वह नहीं करेगा तो कैसे काम चलेगा? इसीलिए हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं कि धर्म ध्यान न करना भी एक प्रकार से चारित्र रूपी मकान को गिराने वाले ठण्डे पानी के समान है । कहने का सारांश यही है कि जीवन रूपी सुन्दर मकान को कषाय रूपी आग और निष्क्रियता रूपी जल, इन दोनों से बचाये रखना चाहिए अर्थात् पाप कर्मों को करना छोड़कर शुभ कर्मों में प्रवृत्त भी होना चाहिए । इसीलिए ब्राह्म-मुहूर्त में उठकर आत्म-चिन्तन एवं उत्तम दिनचर्या के विषय में सोचने का विधान हमारे धर्मग्रन्थों में दिया गया है। एक पन्थ को काज
यहाँ एक बात और ध्यान में रखने की है कि ब्राह्ममुहूर्त में उठना केवल आत्म-हित या आध्यात्मिक दृष्टि से ही उत्तम नहीं है अपितु शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्युत्तम है। वैद्यक शास्त्र कहते हैं
ब्राह्म मुहूर्ते उत्थाय, स्वस्थो रक्षार्थमायुषः ।
तत्र विघ्नोपशान्त्यर्थम स्मरेत् हि मधुसूदनम् ॥ प्रभात काल में शीघ्र उठने से स्वास्थ्य ठीक रहता है तथा आयुष्य की वृद्धि होती है । आप देखते हैं कि जो भी स्वस्थ रहने के अभिलाषी व्यक्ति होते हैं, वे निश्चय ही ब्राह्म मुहूर्त में उठकर घूमने जाते हैं, दौड़ सकने वाले मीलों दौड़ते हैं और पहलवान तथा कसरती पुरुष आसन, व्यायाम कुश्ती अथवा दण्ड-बैठक किया करते हैं । देश की रक्षा करने वाले सिपाहियों को भी प्रातःकाल दौड़ लगानी पड़ती है और उनसे सुबह ही परेड भी कराई जाती है। यह सब इसीलिए कि शरीर स्वस्थ बने । सारांश यही है कि स्वस्थ और नीरोग रहने के नियमों में भी सबसे पहला नियम प्रातःकाल जल्दी उठना है और आत्मोन्नति के लिए आत्म-चिन्तन या ईशप्रार्थना आदि शुभ-क्रियाओं के लिए भी ब्राह्म मुहूर्त में उठना आवश्यक है । इस प्रकार प्रातःकाल जल्दी उठने से शारीरिक स्वस्थता एवं आध्यात्मिक, स्वस्थता दोनों ही सम्पन्न होती हैं तथा सहज ही 'एक पन्थ दो काज' कहावत चरितार्थ हो जाती है।
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