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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
बन्धुओ ! आप प्रतिदिन शाम को अपनी बहियों में जमा-खर्च करते हैं तथा देने और लेने का हिसाब देखते हैं। उसके बाद महीने के अन्त में भी माहवारी हिसाब करते हैं । इतना ही नहीं, सदा जमा-खर्च का ब्यौरा रखने पर भी पुनः प्रत्येक दिवाली पर अर्थात् साल में एक बार तो अपनी सम्पूर्ण पूंजी को सम्हाल ही लेते हैं तथा कहीं भी त्रुटि नहीं रहने देते । पर लगता है कि आप इस जड़ और नश्वर धन के प्रति ही इतनी सावधानी रखते हैं, अपने आध्यात्मिक धन की वृद्धि और उसके ह्रास की परवाह नहीं करते।
आज संवत्सरी का दिन है। इसका महत्व आपको दीपावली से भी अधिक समझना चाहिए। आज के दिन आप अपने वर्ष भर के दोषों को स्मरण करके उनके लिए प्रायश्चित्त कर सकते हैं तथा किसी भी प्राणी के प्रति रहे हुए वर-भाव को मिटाकर उससे क्षमायाचना कर सकते हैं ।
यहाँ एक बात ध्यान में रखने की है कि जिस प्रकार आप प्रतिदिन हिसाब करना छोड़कर कभी भी उसे दीपावली पर करने के लिए नहीं रखते, क्योंकि ऐसा करने से आप पर बड़ा बोझ इकट्ठा हो जाता है, ठीक इसी प्रकार, अपनी छोटी-मोटी गलतियों, अपराधों एवं मन के दोषों को भी संवत्सरी के दिन ही मिटाने के लिए नहीं रखना चाहिए अपितु प्रतिदिन सायंकालीन प्रतिक्रमण के समय दिन भर में हुई भूलों के लिए या मन, वचन तथा शरीर के द्वारा होने वाले दोषों के लिए पश्चात्ताप करके उन्हें भविष्य में पुनः-पुनः न होने देने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये।
ऐसा करने पर मन के छोटे-छोटे दोष भी तुरन्त मिट जाया करेंगे और वे बढ़कर आपको संवत्सरी के अवसर पर भारी बोझ नहीं महसूस होंगे तथा उन्हें मिटाने में आपको कठिन परिश्रम नहीं करना पड़ेगा । दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार प्रतिदिन घर का कचरा और जाले आदि साफ करते रहने से दीपावली पर सफाई के लिए अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता, इसी प्रकार मन का कषायरूपी कचरा प्रतिदिन साफ कर लेने पर संवत्सरी के अवसर पर भी मन को शुद्ध करना कठिन नहीं होता।
तो बन्धुओ, जो भव्य प्राणी अपने मन की शुद्धि के लिए इस प्रकार सदा सजग रहता है वह सहज ही देवत्व की प्राप्ति कर लेता है तथा आत्म-कल्याण करने में समर्थ बनता है।
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