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चिन्तामणि रत्न, चिन्तन
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
आज हम आत्म-चिन्तन के विषय में विचार करेंगे। इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति कभी किसी समय और कभी किसी समय, पर हमेशा चिन्तन करता जरूर है। इसका कारण यह है कि मस्तिष्क अधिक समय तक विचारों से खाली नहीं रह सकता । निद्रा आने पर अथवा एकाग्रता से किसी कार्य में लग जाने पर चिन्तन का प्रवाह कम हो जाता है या कुछ समय के लिए विचारों से मस्तिष्क के सर्वथा शून्य न होने पर भी रुक जाता है; किन्तु अवसर मिलते ही पुनः अपना काम करने लग जाता है।
चितन के प्रकार ___ इस विशाल जगत में मनुष्य का चिन्तन करना कोई बड़ी बात नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति चिन्तन करता है किन्तु हमें समझना यह है कि किस प्रकार का चिन्तन आत्मा के लिए अनर्थकारी है और किस प्रकार का चिन्तन उसके लिए लाभकारी।
संसार में अनेक प्रकार के व्यक्ति होते हैं । वे अपने कार्यों के अनुसार विचार करते हैं तथा उस पर चिन्तन-मनन करते रहते हैं। उदाहरणस्वरूप चोर, डाकू और हत्यारे भी कम चिन्तन नहीं करते, वे अत्यधिक सोचते हैं और विचार करते हैं पर उनका मस्तिष्क यही स्कीमें बनाता है कि किस प्रकार अमुक धनी की हवेली में प्रवेश किया जाय, किस प्रकार तिजोरियाँ खोलकर या सन्दूकों के ताले निःशब्द तोड़कर माल निकाला जाय और फिर किस प्रकार उसे सुरक्षित रूप से लाकर ठिकाने लगाया जाय ? उनके उस अभियान में अगर कोई घर का या बाहर का व्यक्ति बाधक बने तो किस प्रकार उसे सदैव के लिए समाप्त कर दिया जाय यह भी उनके चिन्तन का बड़ा महत्त्वपूर्ण विषय होता है ।
इसी प्रकार किसान चिन्तन करता है कि किस प्रकार उसको फसल अधिक से अधिक मात्रा में प्राप्त हो, उसकी रक्षा किस प्रकार की जाय, और किस प्रकार उससे अधिक लाभ हासिल हो ? बड़ा व्यापारी अपनी दुकानों को और अधिक बढ़ाने के लिए तथा घटिया माल को भी बढ़िया करके निकालने के लिए चिन्तन करता
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