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देवत्व की प्राप्ति
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इरादा करें तो फिर किसी के द्वारा निन्दा, उपहास और अपशब्द सुनाये जाने पर भी उसे अधूरा न छोड़ें तथा जिस प्रकार शिवजी ने स्वयं गरलपान करके औरों को अमृत प्रदान किया था, उसी प्रकार आप भी निन्दा, बुराई आदि सभी को स्वयं सहन करके अपने पुरुषार्थ का शुभ फल समाज के अन्य व्यक्तियों को प्राप्त करने दें । ऐसा करने पर आप परलोक में तो क्या, इसी लोक में देवत्व हासिल कर लेंगे ।
आगे कहा गया है—
आठवा पूर्व इतिहास, करावा सतत् अभ्यास । मनानें शुद्ध वर्तावे तेधवा देवपण पावे ॥
कवि का कथन है कि व्यक्ति देवत्व तभी प्राप्त कर सकता है, जबकि अपने मन को निर्दोष, निष्कलुष, सरल एवं शुद्ध बनावे | और मन शुद्ध तभी बन सकता है जब वह भगवान की आज्ञाओं का पालन करे तथा प्राचीन इतिहास पढ़कर पूर्व में हुए महान संत एवं सतियों के जीवन चरित्र पढ़कर उनके महान गुणों को अपने जीवन में भी उतारे ।
हमारे यहाँ कितने महान् संत तथा कैसी-कैसी महान् सतियां हुई हैं ? सोलह सतियां, जिनके नाम आप प्रतिदिन लेते हैं, नारी जाति की होकर भी आठों कर्मों से मुकाबला करके विजयी बनी हैं । महासती चन्दनबाला, सुभद्रा, सीता आदि सभी ने अपने जीवन में अनेकानेक कष्ट सहे किन्तु प्राण देकर भी उन्होंने अपनी शील- रक्षा की तथा त्याग एवं तपस्यामय संयम मार्ग पर दृढ़ता से गमन करते हुए आत्मकल्याण किया ।
इसी प्रकार केवल साधु-साध्वी ही नहीं वरन् उस काल में ऐसे-ऐसे महान् श्रावक और श्राविकाएँ भी हुई हैं जो देवताओं के द्वारा चलायमान किये जाने पर भी अपने धर्म से विचलित नहीं हुए तथा पूर्ण दृढ़तापूर्वक उस पर अग्रसर होते रहे ।
तो उन महान् आत्माओं को आदर्श मानकर हमें और आपको भी मनः शुद्धि करते हुए आत्मोन्नति के मार्ग पर बढ़ना है और यह प्रयास करते रहने पर ही सम्भव हो सकता है । हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिये कि मन की शुद्धि होना बड़ा कठिन है या मुक्ति प्राप्त करना किस प्रकार सम्भव है ? आप जानते हैं कि एक-एक बूंद पानी गिरकर भी पत्थर में छेद कर देता है और एक-एक चोट खाकर बड़े से बड़ा वृक्ष भी कट जाता है । तब फिर सतत प्रयत्न करने से हमारा मन क्यों नहीं शुद्ध हो सकता, और हमारे कर्मों का नाश क्यों नहीं किया जा सकता ? आवश्यकता केवल इसी बात की है कि हम अपने मन में रहे हुए छोटे से छोटे और प्रत्येक दोष को मिटाने का प्रयत्न करें ।
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