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आनन्द प्रवचन | छठा भाग महात्मा जी ने उससे भी कह दिया- "तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी और तुम पुत्र प्राप्त कर लोगे।" व्यक्ति चला गया।
__ अब महात्मा जी ने तीसरे आगन्तुक की ओर निगाह फेरी । यह देखकर वह बोल पड़ा-“महात्मा ! मैं अपना अभाव आपसे किस प्रकार बताऊँ ? इस संसार में स्त्री के बिना तो कुछ सुख है ही नहीं, और मैं अब तक कुंवारा हूँ। मुझे आज तक पत्नी नहीं मिल सकी है अतः आप दया करके मुझे यही वर दीजिए कि मेरा विवाह हो जाय । बस, इसके अलावा मैं और कुछ भी नहीं चाहता। धन-वैभव की कामना मेरी नहीं है।"
सन्त ने स्त्री-सुख के अभिलाषी उस व्यक्ति को भी निराश नहीं किया और उसे वरदान दे दिया-"जाओ शीघ्र ही तुम्हारा विवाह हो जाएगा।" वह व्यक्ति भी परम हर्ष का अनुभव करता हुआ महात्मा जी के चरण छूकर चला गया ।
अब वहाँ केवल एक व्यक्ति रह गया था। सन्त ने उसे भी स्नेह-दृष्टि से देखा और पूछा "भाई तुम क्या चाहते हो ?"
वह व्यक्ति बोला- "भगवन् ! मैं तो संसार के झमेलों से परेशान हो गया हैं, अतः मुझे तो ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे हृदय में प्रभु के प्रति गहरी आस्था और भक्ति जाग्रत हो उठे।"
सन्त उसकी बात सुनकर तनिक चौंके, क्योंकि उनके पास सभी व्यक्ति सांसारिक सुखों के साधनों की इच्छा से आया करते थे। किन्तु यह व्यक्ति ऐसा था जो उनसे विपरीत माँग कर रहा था। वे प्रसन्न हुए और बोले-"भाई ! तुम्हारी मनोकामना भी पूर्ण हो जाएगी ।" व्यक्ति सहर्ष सन्त के चरणों में मस्तक झुकाकर धीरे-धीरे वहाँ से चला गया ।
सन्त भी कुछ समय पश्चात् वह शहर छोड़कर अन्यत्र चले गये । पर काफी अर्से बाद वे पुनः उधर आ निकले और संयोग ऐसा बना कि उसी शहर के निवासी होने के कारण वे चारों व्यक्ति एक ही दिन उनके दर्शनार्थ आए ।
सन्त ने उन्हें पहचान लिया और पहले व्यक्ति से पूछा- "बन्धु ! अब तो तुम धनीमानी दिखाई दे रहे हो । अपनी स्थिति से सन्तुष्ट हो न?"
व्यक्ति उदास होकर बोला-"महाराज, पहले मैं भूखों मरता था, और आपकी कृपा से खूब धन हासिल हो गया पर एक ओर तो दुकानों और फैक्टरियों का काम इतना अधिक रहता है कि दिन-रात चैन नहीं मिलती, दूसरे दिन भर बैठे रहने से पेट खराब हो गया है अतः इच्छानुसार कुछ भी खा नहीं सकता । पालक की भाजी और रूखी रोटी खाकर रहना पड़ता है।"
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