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देवत्व की प्राप्ति
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मनुष्य के हृदय में जब राम या भगवान के प्रति दृढ़ आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास घर कर जाता है तो उसकी अन्य क्रियाएँ भी दस-दस गुना फल प्रदान करती जाती हैं । किन्तु अगर भगवान के प्रति ही प्रगाढ़ श्रद्धा न रही या कि विश्वास डोलता रहा तो भक्ति की अन्य क्रियाओं में सच्चाई नहीं आ सकती और वे दिखावा मात्र बनकर रह जाती हैं ।
हम भी आपको यही कहते हैं कि भगवान की आज्ञानुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप-रूप धर्म की आराधना करना एक के अंक से समान है और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, शील, अपरिग्रह, क्षमा, दान, सेवा एवं परोपकार आदि समस्त उत्तम गुण और क्रियाएँ बिंदियों के समान हैं जो कि धर्म के महत्त्व या फल को उत्तरोत्तर दस गुना बढ़ाते जाते हैं । पर आवश्यक यह है कि एक के अंक को स्थिर रखा जाय । अन्यथा बिना भावना के आपका दान-पुण्य या सामायिक प्रतिक्रमण आदि सब कुछ करना एक के अंक से रहित बिंदियों के समान निरर्थक चला जाएगा ।
सज्जनो ! यह संसार मृग मरीचिका के समान है । जिस प्रकार मृग चमकती हुई बालू रेत को जलाशय समझकर उस ओर दौड़ता रहता है किन्तु उसे जल प्राप्त नहीं होता, इसी प्रकार मानव सांसारिक पदार्थों में सुख प्राप्ति की कामना से उनके लिए अहर्निश प्रयत्न करता रहता है पर उन्हें इकट्ठा करके भी वह सच्चा सुख कभी हासिल नहीं कर पाता और सदा व्याकुल बना रहता है ।
सच्चा सुख और शांति किसमें है ? एक महात्माजी को वचनसिद्धि हासिल हो गई थी । एक बार घूमते-घूमते वे किसी शहर में जा पहुँचे । सिद्ध पुरुष होने के कारण उनकी शोहरत शीघ्र ही शहर में फैल गई और अनेक व्यक्ति आकर उनसे इच्छित वर प्राप्त करने लगे ।
एक दिन उनके पास चार व्यक्ति आए । महात्मा जी ने उनसे भी आने का कारण पूछा । इस पर पहले व्यक्ति ने कहा - " भगवन् ! जन्म से लेकर आज तक दरिद्रता की चक्की में पिस रहा हूँ । न कभी दोनों जून पेट भर दाना मिल पाया है। और न तन ढकने के लिए पूरे वस्त्र । अतः कृपा करके आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे पास खूब धन हो जाय, किसी तरह की कभी न रहे ।”
महात्मा जी उस व्यक्ति की प्रार्थना पर मुस्कराये और बोले – “तथास्तु, जाओ तुम्हें इच्छित धन मिल जायगा ।" धन का इच्छुक व्यक्ति खुश होकर वहाँ से चल दिया ।
अब दूसरे व्यक्ति की बारी आई । सन्त ने उससे आने का कारण जानना चाहा । अतः दूसरा व्यक्ति कहने लगा- "महाराज ! मेरे पास धन तो प्रचुर मात्रा में है पर सन्तान नहीं है । कृपा करके मुझे पुत्र प्राप्ति का वर दीजिए ।"
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