SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार दुर्लभ गुण ४७ न्तर के दुःख का कारण बनता है । अहंकारी पुरुष इस जन्म में भी अपयश का भागी बनता है और मर जाने पर भी सदा कलंकित के रूप में संसार के द्वारा स्मरण किया जाता है। एक अंग्रेजी की कहावत में भी यही कहा गया है"Pride goes before, and shame follows after." पहले गर्व चलता है, उसके बाद कलंक आता है। रावण कम ज्ञानी नहीं था, अपने ज्ञान के बल पर ही उसने अनेक सिद्धियाँ हासिल की थीं किन्तु ज्ञान का, शक्ति का और दौलत का गर्व उसे पतन की ओर ले गया तथा सदा के लिए ले डूबा । आज भी लोग दशहरे पर रावण का पुतला बनाकर जलाते हैं और उस पर थूकते हैं। कहने का अभिप्राय यही है कि गर्व व्यक्ति को किसी भी बात का नहीं होना चाहिए। हमारे धर्मग्रन्थ अभिमान के आठ कारण बतलाते हैं, जिन पर व्यक्ति अहंकार करता है और उनमें से एक, दो या जितने भी कारणों पर वह घमण्ड करता है, वे कारण उसे ले डूबते हैं । योगशास्त्र में बताया गया है जाति-लाभ-कुलेश्वर्य-बल-रूप-तपः-श्रु तैः । कुर्वन् मदं पुनस्तानि, हीनानि लभते जनः ।। अर्थात् जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप एवं ज्ञान का मद करता हुआ जीव भवान्तर में हीन जाति आदि को प्राप्त करता है। और इसके विपरीतसमणस्स जणस्स पिओ णरो, ____अमाणो सदा हवदि लोए । णाणं जसं च अत्थं, लभदि सकज्जं च साहेदि ॥ -भगवती आराधना १३७६ निरभिमानी मनुष्य जन और स्वजन सभी को सदा प्रिय लगता है । वह ज्ञान, यश और सम्पत्ति प्राप्त करता है तथा अपना प्रत्येक कार्य सिद्ध कर सकता है । मान मोहनीय कार्य के उदय से होता है तथा जाति, कुल एवं ज्ञान आदि का अहंकार करना आत्मा का विभाव परिणाम कहलाता है। इसके कारण जन्ममरणरूप संसार की वृद्धि होती है और इस लोक में भी अहंकारी पुरुष लोगों का सम्माननीय नहीं बनता । अभिमानी व्यक्ति अपने रत्तीभर गुण को सुमेरु के बराबर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy