________________
.
आनन्द प्रवचन | छठा भाग
संन्यासी के कथनानुसार पेट-दर्द का बहाना बनाया और जैसे असह्य दर्द हो रहा हो, इस प्रकार चीखने लगा।
उसकी माँ एवं पत्नी आदि सभी चिन्ता में पड़ गये और एक के बाद एक डॉक्टर, वैद्य एवं हकीमों को बुलाया गया। पर दर्द को तो बिना परीक्षा लिए ठीक नहीं होना था अतः वह नहीं मिटा ।
___इतने में ही वहाँ सन्यासी महाराज आ पहुँचे । ब्राह्मण की माता ने रोते हुए संन्यासी से कहा-"महाराज ! आप ही किसी प्रकार मेरे बेटे को ठीक कर दीजिए। यही तो मेरा कमाऊ पूत है जो सबका पालन-पोषण करता है।"
संन्यासी जी ने बीमार को कुछ देखा-भाला और वृद्धा से बोले-"माताजी ! आपके पुत्र की बीमारी तो बड़ी गहरी है पर यह ठीक हो सकती है अगर एक शर्त पूरी की जाय ।"
__ "आप बताइये महाराज ! मैं बेटे के लिए सभी कुछ करने को तैयार हैं।"
ब्राह्मण माँ की बात सुनकर मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ और सोचने लगा - 'आज संन्यासी जी की बात झूठ साबित होगी। मेरी माँ मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार है । वह जान भी इस समय दे सकती है ।' पर प्रत्यक्ष में वह झूठे पेटदर्द के बहाने छटपटाता और चीखता-चिल्लाता रहा ।
__इधर संन्यासी ने जब ब्राह्मण की माँ की बात सुनी तो गम्भीरता से बोले"माता जी ! आपका पुत्र आज तभी ठीक हो सकता है जबकि इसके बदले कोई भी एक व्यक्ति अपने प्राणों की आहुति दे दे। मैं समझता हूँ कि आप वृद्ध हैं और इस उम्र में आपके लिए जीना-मरना समान है। अतः क्या आप अपने कमाऊ पुत्र के लिए अपनी जान देने को तैयार हैं ? अगर ऐसा हो तो मैं अभी इसे पूर्णतया ठीक कर सकता हूँ।"
संन्यासी की बात सुनकर वृद्धा के तो मानों पैरों तले से जमीन ही खिसक गई । वह कुछ क्षण जड़वत् बैठी रही, पर फिर बोली
"बाबा जी ! आपका कहना सत्य है । मैं अपने प्यारे पुत्र के लिए प्राण भी दे सकती हूँ, पर बात यह है कि मेरे ये दूसरे छोटे-छोटे बच्चे मुझसे बहुत लगे हैं अतः मेरे मरने पर इन्हें बड़ा दुःख होगा । इसलिये मैं अभागी अपने बेटे के लिए प्राण भी नहीं दे सकती।"
माँ की बात सुनकर बाबा जी ने अपनी निगाह ब्राह्मण की पत्नी की तरफ डाली और उससे कहा- "पुत्री ! मैं समझता हूँ कि अपने प्राणों से भी प्रिय पति के लिए तुम अवश्य ही इस नश्वर देह को छोड़ सकती हो। इससे बढ़कर सौभाग्य
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org