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पराये दुःख दूबरे
३५ को बाँटने वाला नहीं होता। माता, पिता और पत्नी जो कि स्वार्थ-सिद्ध होते समय व्यक्ति के लिए प्राण तक दे देने की तत्परता दिखाते हैं, वे ही समय पर मुकर जाते हैं । एक उदाहरण से यह बात समझ में आ जायगी ।
प्रेम की परीक्षा किसी स्थान पर एक बड़े विद्वान और क्रियानिष्ठ संन्यासी रहते थे । उनके पास एक ब्राह्मण आया-जाया करता था तथा सांसारिक एवं आध्यात्मिक सभी विषयों पर उनमें बातचीत हुआ करती थी ।
एक दिन इसी प्रकार जब वे बातचीत कर रहे थे तो वार्तालाप के दौरान संन्यासी ने ब्राह्मण से कहा- "भाई ! कुछ धर्माराधन किया करो। संसार के कार्य तो कभी समाप्त होते ही नहीं हैं और आयु समाप्त हो जाती है । तुम जीवन भर मर-खपकर पापों का उपार्जन करते रहोगे और जिनके लिए पाप करोगे वे भी तुम्हें छोड़ देंगे, जबकि तुम्हारी वृद्धावस्था आ जायगी और शारीरिक बल क्षीण हो जायगा।"
संन्यासी की बात सुनकर ब्राह्मण चिहुँक पड़ा और बोला-"महाराज ! यह बात तो आप गलत कह रहे हैं। मेरी माता और पत्नी तो मुझ पर जान देने को तैयार रहती हैं, इतना उनका मुझ पर प्रेम है।" ____ सन्यासी ब्राह्मण की बात सुनकर अर्थपूर्ण दृष्टि उस पर डालते हुए मुस्कराये और बोले
"अगर ऐसी बात है तो एक दिन उनके प्रेम की परीक्षा लेकर देख लो !"
"हाँ यह बात ठीक है । पर याद रखिये महाराज, मेरी बात सत्य साबित होगी । मेरी माँ तो मेरे सिर में दर्द होते ही बेहाल हो जाती है और पत्नी का तो पूछना ही क्या है, वह जीवित रहती हुई भी अपने आपको मृतक समझने लगती है ।
और ऐसा हो भी क्यों नहीं, उनका मेरे ऊपर अपार स्नेह है। पर आप देखना चाहते हैं तो बताइये, अब मुझे क्या करना है और किस प्रकार परीक्षा लेनी है।" ब्राह्मण ने पूर्ण विश्वास पूर्वक पूंछा।
संन्यासी ब्राह्मण की लम्बी-चौड़ी बातों को चुपचाप सुन रहे थे । उनका उत्तर देना उन्होंने जरूरी नहीं समझा, केवल यही कहा-"तुम आज ही घर जाकर पेट-दर्द का बहाना करना और जोर-जोर से चिल्लाने लगना। ठीक उसी समय मैं वहाँ आकर तुम्हें एक तमाशा बताऊँगा।"
ब्राह्मण ने इसे स्वीकार किया और घर चला गया। शाम होते-होते उसने
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