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आनन्द प्रवचन
भाग
७. अकुंठावास
अकुंठावास का अर्थ है-भयरहित स्थान में निवास करना । भयरहित स्थान में रहने का सुयोग भी बड़ी पुण्यवानी के बल पर मिलता है । आप लोग अखबार पढ़ते हैं और जानते हैं कि बिहार जैसे क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के समय इतनी भयंकर बाढ़ें आती हैं कि सैकड़ों लोग अपने मकानों, झोंपड़ों और घर की चीजबस्त ही नहीं वरन् परिवार के लोगों सहित बह जाते हैं। अनेकों व्यक्ति उस समय अपने प्राण खोते हैं पर जो बचते हैं वे पुनः उन्हीं स्थानों पर अपने घर बनाते हैं । इस प्रकार हमेशा अपना सर्वस्व खोकर भी वे वहीं रहते हैं और सदा भयभीत रहते हुए भी वहीं अपना जीवनयापन करते हैं।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश के ग्वालियर आदि अनेक स्थानों में जहाँ सघन जंगलों की अधिकता है, वहाँ डाकुओं का भय सदा जनता के लिए बना रहता है। जब वे डाका डालते हैं, तब धन-पैसा तो ले ही जाते हैं, विरोध करने वालों को जान से भी खत्म कर जाते हैं। कई बार तो वे श्रीमन्तों के पुत्रों को ही पकड़कर ले जाते हैं
और अपनी माँग के अनुसार हजारों रुपये लेकर उन्हें छोड़ते हैं, अन्यथा मार डालते हैं।
___ इसी प्रकार कई प्रदेशों में कुछ विशेष प्रकार के रोगों का भय सदा बना रहता है । यही कारण है कि भयरहित स्थान को सुख माना गया है और यह सुख भी पुण्य के बल पर मिलता है।
तो बंधुओ, आप समझ गये होंगे कि धर्म के प्रभाव से पुण्यवानी बढ़ती है और तभी इस संसार में रहने पर भी मनुष्य को श्लोक के आधार पर बताये गये सात सुख प्राप्त होते हैं। ये सातों सुख जब व्यक्ति को मिल जाते हैं तो फिर और कोई भी कमी भौतिक सुखों में नहीं रह जाती। समस्त सांसारिक सुख इन्हीं में समाविष्ट हो जाते हैं।
इस प्रकार इस लोक के सुख भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है तथा शुभ कर्मों का संचय कर लेने पर परलोक में भी सदा के लिए शाश्वत सुख और अकुंठावास यानी मोक्ष-स्थान प्राप्त करने में समर्थ बनता है, जहाँ से फिर कभी भी जन्म लेकर मृत्यु आदि के दुःख पाने की आवश्यकता नहीं रहती।
पर ऐसा होगा तभी, जबकि मुमुक्षु दृढ़ श्रद्धा रखता हुआ धर्माराधन करे । दान, शील, तप एवं भाव को जीवनसात् करे तथा मन, वचन एवं शरीर को साधकर सम्यक प्रकार से ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की साधना करे।
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