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धर्मो रक्षित रक्षितः
विदुर जी कौरवों और पाण्डवों के समय में हुए थे। उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था कि दुर्योधन जैसे सौ पुत्र होने पर भी पिता धृतराष्ट्र कभी सुखी नहीं रह सके और उनके कारण उस समय सम्पूर्ण कुल का नाश हुआ सो तो हुआ ही, साथ ही सदा के लिए भी कुल कलंकित हो गया। आज भी कौरवों के विषय में पढ़कर लोगों का हृदय क्रोध और घृणा से भर जाता है ।
और इसके विपरीत राजा दशरथ के चार ही पुत्र थे किन्तु उन चारों के सुपुत्र होने के कारण आज भी लोग रघुकुल को निष्कलंक, उज्ज्वल और आदर्श मानते हैं । पिता के प्रति भक्ति एवं उनकी आज्ञा का पालन करके राम जगत-पूज्य बने और आज उन्हीं के कारण घर-घर में रामायण परम श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ी जाती है। आचार्य चाणक्य ने एक स्थान पर लिखा है
एकोऽपि गुणवान्पुत्रो, निर्गुणैश्च शतैर्वरः ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, न च तारा सहस्रशः ।। अर्थात्-सैकड़ों गुणरहित पुत्रों की अपेक्षा एक गुणी पुत्र श्रेष्ठ है। एक चन्द्रमा ही अन्धकार नष्ट कर देता है, सहस्र तारे नहीं।
तो बन्धुओ, कुल को प्रकाशित करने वाले सुपुत्र क्या बिना पुण्यवानी और धर्म के अभाव में मिल सकते हैं ? कभी नहीं, इसीलिए कहा जाता है कि धर्माराधन करो, इसके द्वारा परलोक में तो सुख मिलेगा तब मिलेगा पर इस लोक में भी सात महान सुखों की उपलब्धि हो जाती है ।
६. राजा की कृपा हम प्राचीनकाल के इतिहास को उठाकर देखते हैं तो मालूम होता है कि मनुष्य के जीवन में राजा का कितना महत्व था। अगर उसकी कृपादृष्टि होती तब तो लोग निहाल हो जाते थे, और जरा सी आँख टेढ़ी होते ही नाना प्रकार के कष्टों का सामना करने को बाध्य हो जाते थे। छोटे-छोटे अपराधों के कारण ही राजा लोग अपराधियों को देश निकाला, मृत्यु-दण्ड, मुँह काला करवा कर गधे की सवारी आदि-आदि सजाएँ दे दिया करते थे ।
कई बार तो वे अपना क्रोध केवल अपराधी पर ही उतार कर सन्तुष्ट नहीं होते थे । वरन् उसके सम्पूर्ण कुल या परिवार को भी सजा देते थे । अकबर बादशाह ने कवि गंग पर नाराज होकर उसके सारे परिवार को पानी में पिलवा दिया था।
ऐसी स्थिति में राजा की सौम्य-दृष्टि या कृपा-दृष्टि का होना भी महान् सुख का कारण माना जाता था ।
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