SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मो रक्षित रक्षितः २३ तुम कितनी अच्छी हो ! कहा जाता है कि संत तुकाराम पैसे के अभाव में बड़ी कठिनाई से अपना गुजारा चलाते थे। एक बार उनके घर में अन्न नहीं था अतः वे अपने खेत से गन्ने काट लाने के लिए गये। गन्ने उन्होंने काटे और उनकी भारी बनाकर सिर पर रखते हुए घर की ओर रवाना हुए। पर मार्ग में बहुत से बच्चे मिले और बच्चों को स्वभावतः ही गन्ने प्रिय होते हैं अतः उन्होंने तुकारामजी से गन्ने मांगे । तुकाराम सच्चे संत और भगवान के भक्त थे । उन बच्चों में भी उन्होंने भगवान का रूप देखा और सबको एक-एक गन्ना दे दिया । बच्चे अत्यन्त प्रसन्न होकर गन्ने चूसते हुए इधर-उधर चले गये। अब तुकाराम जी के पास केवल एक गन्ना बचा और उसे ही लिए हुए वे घर आए । उनकी पत्नी रखुमाई बड़ी चिड़चिड़ी और क्रोधी स्वभाव की थी। अतः ज्यों ही उसने पति को एक गन्ना घर लाते हुए देखा तो आग-बबूला हो गई और वही गन्ना छड़ाकर उनकी पीठ पर दे मारा । गन्ने के दो टुकड़े हो गये । तुकारामजी तो कषाय-विजयी थे अत: वे मुस्कुराते हुए बोले-"वाह कितनी अच्छी स्त्री हो तुम । अभी मुझे हम दोनों के लिए गन्ने के दो टुकड़े करने पड़ते पर मुझे तकलीफ न देकर तुमने स्वयं ही यह कार्य कर दिया।" बधुन्ओ संत तुकाराम तो क्रोध-जित थे अतः उन्होंने पत्नी की मार को भी मधुरता से सहन कर लिया। किन्तु क्या सभी पुरुष ऐसे हो सकते हैं ? नहीं, परिणाम यह होता है कि स्त्रियों के ताने-बाने और दुर्वचनों के कारण घर में सदा कलह मची रहती है। ___ पर जो व्यक्ति पुण्यवान होते हैं और अपने जीवन को धर्ममय बनाये रहते हैं, उन्हें सुभार्या प्राप्त होती है और घर स्वर्ग बना रहता है । आचार्य चाणक्य ने एक स्थान पर लिखा है सा भार्या या शुचिर्दक्षा, सा भार्या या पतिव्रता । सा भार्या या पतिप्रीता, सा भार्या सत्यवादिनी ।। वही भार्या सुभार्या है जो पवित्र और चतुर है, वही भार्या है जो पतिव्रता है, वही भार्या है जिस पर पति की प्रीति है और वही भार्या है जो सत्य बोलती है। वस्तुतः ऐसी सती स्त्रियाँ बड़े भाग्य से और धर्म के प्रताप से ही प्राप्त होती हैं । जो पति के द्वारा और ससुराल के अन्य व्यक्तियों के द्वारा नाना कष्ट दिये जाने पर भी अपने पातिव्रत्य-धर्म से विचलित नहीं होती और सत्य एवं शील पर दृढ़ रहती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy