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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
की स्वभाव अवस्था तो क्षमा-भाव है और जो इसको धारण कर लेता है, वह न जाने कितने कर्मों की निर्जरा केवल इस गुण कारण ही कर लेता है । वह मूल जाता है कि वीरों का हथियार दण्ड देना या अपमान का बदला लेना ही नहीं है, अपितु क्षमा करना भी है । कहा भी जाता है – “क्षमा वीरस्य भूषणम् ।"
मनुष्य चाहे कर्मवीर हो या धर्मवीर, उसे क्षमा धारण करनी चाहिए । क्षमा के द्वारा ही वह अपने शत्रुओं को सच्चे अर्थों में जीत सकता है । कर्म-क्षेत्र में अगर व्यक्ति सामने वाले के कटु शब्दों को शांतिपूर्वक सहन करके उनका मधुरता पूर्वक उत्तर देता है तो कौन ऐसा क्रूर हृदय वाला व्यक्ति होगा जो कि पानी-पानी नहीं हो जाता ? और इसी प्रकार धर्म क्षेत्र में उतरने वाला व्यक्ति भी अपना अहित करने वाले पर अगर क्षमा रखता है तो समय आने पर वह व्यक्ति तो पश्चात्ताप करता ही है साथ ही धर्मपरायण एवं क्षमाधारी व्यक्ति के कर्म रूपी दुश्मन भी परास्त हो जाते हैं ।.
भगवान पार्श्वनाथ एवं महावीर जैसे भव्य प्राणियों को भी समय-समय पर अनेकों व्यक्तियों ने कष्ट दिये। उन अवतारी पुरुषों में क्या आतताइयों से बदला लेने जैसी सिद्धि नहीं थी ? अवश्य थी । किन्तु उन्हें तो अपने अष्ट- कर्मों को निर्मूल करना था और यह कार्य केवल क्षमा के द्वारा ही संभव था । अतः उन्होंने खन्तिधर्म को अपनाया । क्रोध को जीतने वाला व्यक्ति ही क्षमा-भाव को धारण करके कर्मों का सामना कर सकता है तथा उन्हें जीत सकता है ।
गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से एक जीवे किं जणय ?" यानी क्रोध - विजय करने से होती है ?
भगवान ने उत्तर दिया
बार पूछा – “कोहविजएणं भन्ते जीव को किस फल की प्राप्ति
"कोहविजएणं खतिं जणवइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।”
अर्थात् - क्रोध- विजय से क्षमा गुण की प्राप्ति होती है, क्रोधजन्य कर्मों का नवीन बन्ध नहीं होता तथा पूर्वबद्ध कर्म क्षय हो जाते हैं ।
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इसलिए बन्धुओ, प्रत्येक व्यक्ति को यह भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि क्षमा-धर्म महान् तप है, जिसके द्वारा असंख्य कर्मों की निर्जरा होती है । पर वह क्षमाभाव भी कैसा हो ? वह क्षमा, क्षमा नहीं कहलाती जो दीन-हीन एवं दुर्बल व्यक्ति के पास होती है । उसकी क्षमा तो इसलिए होती है, वह प्रतिकार की शक्ति ही नहीं रखता । सच्ची क्षमा वह कहलाती है जब कि व्यक्ति बदला लेने की पूर्ण शक्ति
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