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चार दुष्कर कार्य
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
संवरतत्व पर हमारा विवेचन चल रहा है। यह जीवन के लिए महान कल्याणकारी और आत्म-हितकर है । हमें अन्य वस्तुएँ तो प्राप्त हो सकती हैं । किन्तु संवर और निर्जरा, इन दो तत्वों का चिन्तन, मनन एवं आचरण करना बहुत कठिन है । पर जिन भव्य प्राणियों ने संवर तत्व को अपनाया तथा दान, शील, तप और भाव-रूप धर्म को जीवन में उतारा, वे संसार-सागर से पार हो गये। आज भी ऐसे प्राणी इस प्रयत्न में हैं और भविष्य में भी आत्म-कल्याण के इच्छुक व्यक्ति ऐसा करेंगे।
एक गाथा में कहा गया हैदानं दरिहस्स पहस्स खन्ति, इच्छानिरोहो य सुहोइयस्स ।
तारुण्णए इदिय निग्गहो य, चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणि ॥
इस सुन्दर गाथा में मनुष्य के लिए चार चीजें बहुत कठिन बताई गई हैं। ध्यान में रखने की बात है कि मानव के लिए इन चार वस्तुओं को दुष्कर अवश्य बताया गया है, किन्तु असम्भव या अशक्य नहीं कहा है। इसलिए प्रत्येक मुमुक्षु को तनिक भी निराश न होते हुए इनकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए तथा अपनी बुद्धि, विवेक एवं आत्म-शक्ति के बल पर इन्हें अपनाना चाहिए। अब हम गाथा में ब्रताई हुई पहली बात पर आते हैं।
दरिद्र के द्वारा दान कैसे दिया जाय ? गाथा में सर्वप्रथम कहा गया है कि दरिद्र के द्वारा दान दिया जाना कठिन है। इसका कारण यही है कि दरिद्र व्यक्ति के पास देने के लिए कुछ नहीं होता तो वह देगा कैसे ?
पर बन्धुओ, मैंने पहले ही आपको बताया है कि गाथा में बताई हुई चारों बातें कठिन अवश्य हैं पर अशक्य या असम्भव नहीं हैं। इस आधार पर यह निश्चय ही कहा जा सकता है कि दरिद्र व्यक्ति भी दान अवश्य दे सकता है और
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