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पौरुष थकेंगे फेरि पीछे कहा करि है ?
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न किया जाय तो फिर किस जन्म में और किस योनि में उसके उद्धार का उपाय किया जा सकेगा ? किसी में भी नहीं, इसलिए जो मनुष्य अपने इस जीवन में आत्मा का हित नहीं करता यानि उसे संसार से मुक्त करने का प्रयत्न नहीं करता वह सचमुच ही अपनी आत्मा के साथ गद्दारी करता है । किन्तु परिणाम यह होता है कि महान पुण्यों के फलस्वरूप प्राप्त हुआ यह दुर्लभ जीवन समाप्त हो जाता है। और फिर पुनः मिलना कठिन हो जाता है ।
इसीलिए भगवान महावीर ने फरमाया है—
दुल्हे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण कि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो,
समयं गोयम ! मा पमायए ॥
— श्री उत्तराध्ययन सूत्र
अर्थात् — हे गौतम सब प्राणियों के लिए मनुष्य भव चिरकाल तक दुर्लभ है । दीर्घकाल व्यतीत होने पर भी उसकी प्राप्ति होना कठिन है; क्योंकि कर्मों के फल बहुत गाढ़े होते हैं । अतः समय मात्र का भी प्रमाद मत करो ।
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वस्तुत यह कौन जानता है कि जीव को अगला भव मनुष्य का ही मिलेगा ? विशेषकर उन व्यक्तियों को, जो कि अपना सम्पूर्ण जीवन विषय-वासनाओं के सेवन में और धन संचय के लिये हाय-हाय करने में ही व्यतीत कर देते हैं । ऐसे व्यक्ति कभी पुनः मानव-जीवन नहीं पा सकते और किसी न किसी हीन योनि में जा पहुँचते हैं | मराठी भाषा में एक स्थान पर कहा गया है ।
"मनारे कांही करी सुविचार, काया माया व्यर्थ चियामधे ।"
हे मन ! कुछ तो विचार कर । अगर मोहमाया में और दुनियादारी में पड़ा रहकर तू व्यर्थ ही जन्म गँवा देगा तो भविष्य में निश्चय ही पश्चात्ताप करना पड़ेगा । यह काया और माया अर्थात् शरीर और धन दोनों ही क्षणभंगुर हैं । अतः तू इन की प्राप्ति को बड़ा सुन्दर सुयोग मानकर धन से दान-पुण्य कर और शरीर से जप, तप, ध्यान, स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन आदि शुभ क्रियाएँ करके इनका लाभ उठा ले । अन्यथा ये दोनों ही नष्ट हो जाएँगे और सर्प की तरह रक्षा करते हुए भी एक दिन तुझे इन्हें छोड़ना पड़ेगा । उस समय न यह शरीर तेरे पास रह सकेगा और न धन ही किसी काम आएगा । उलटे जीवन भर धन के लिए अनीति, धोखेबाजी एवं झूठ-कपट करते रहने के कारण मरने के पश्चात् भी तुझे सुख हासिल नहीं हो सकता । किसी ने सत्य ही कहा है
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