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पौरुष थकेंगे फेरि पीछे कहा करि है ?
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आ जाएगी और मस्तक पर काल मँडराने लगेगा, तब फिर तुम धर्म-साधना जैसा महान कार्य किस प्रकार कर सकोगे । यानी नहीं कर सकोगे। केवल पश्चात्ताप ही उस समय तुम्हारे हाथ आएगा।
तात्पर्य यही है कि अज्ञानी पुरुष तो यह विचार करते हैं कि जब वृद्धावस्था आएगी तब धर्माचरण कर लेंगे; किन्तु ज्ञानी पुरुष एवं संत-महात्मा इसके विपरीत यह चेतावनी देते हैं कि जब तक शरीर में शक्ति है तथा इन्द्रियाँ अपना कार्य बराबर कर रही हैं, तब तक धर्म की साधना कर लो। कौन जाने वृद्धावस्था आएगी भी या नहीं ? क्योंकि बाल्यावस्था और युवावस्था में भी अनेकों व्यक्ति काल-कवलित हो जाते हैं और कदाचित् वृद्धावस्था आ भी गई तो वह मनुष्य को अर्ध-मृतक के समान बना देती है। विभिन्न प्रकार की व्याधियाँ और नाना प्रकार की पीड़ाएँ बुढ़ापे में व्यक्ति को अशांत एवं अशक्त बनाती हैं तथा उसके चित्त की समाधि को सर्वथा नष्ट कर देती हैं । उस अवस्था में भला फिर धर्माराधन किस प्रकार संभव हो सकता है ? अतएव शरीर के स्वस्थ एवं सशक्त रहते ही व्यक्ति को धर्म की विशिष्ट प्रतिपालना करनी चाहिये ।
एक बात और भी ध्यान में रखने की है कि मान लो व्यक्ति बाल्यावस्था या बुद्धावस्था में मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ और उसने पूर्ण आयु प्राप्त कर ली, तो भी उसे कितना कम समय धर्माराधन के लिए मिलता है । इस वर्तमान समय में अधिक से अधिक सौ वर्ष की उम्र मानी जा सकती है पर उसका हिसाब लगाते हुए भर्तृहरि ने कहा है
आयुर्वर्षशतं नृणां परिमितं रात्रौ तदद गतं; तस्यास्य परस्य चतुर्मपरं बालत्व वृद्धत्वयोः । शेष व्याधि-वियोग दुःख सहित सेवादिभिर्नीयते;
जीवे वारितरंगचंचलतरे सौख्यं कुतः प्राणिनाम ? अर्थात्-मनुष्य की उम्र औसत सो की मानी गई है। उसमें आधी रात तो सोने में गुजर जाती है । बाकी में से एक भाग बचपन में और एक भाग बुढ़ापे में व्यतीत होता है । शेष में से जो एक भाग बचता है वह रोग, वियोग, शोक, चाकरी एवं नाना प्रकार के क्लेशों में बीत जाता है। अतः जल की तरंग के समान इस चंचल जीवन में प्राणियों को सुख कहाँ है ?
भर्तृहरि की बात को और भी स्पष्ट इस प्रकार समझा जा सकता है कि सौ वर्ष की आयु में से मनुष्य के पचास वर्ष तो रात्रि के समय सोने में व्यतीत हो जाते हैं । बाकी पचास के तीन भाग करने पर सत्रह वर्ष उसकी बाल्यावस्था में जाते हैं । शैशवावस्था में तो वह पूर्णतया पराधीन रहता है, जन्म से लेकर चार छः साल
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