SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनन्द प्रवचन | छठा भाग बन्धुओ, भगवान की यह चेतावनी केवल गौतम स्वामी के लिए ही नहीं थी, अपितु प्रत्येक मानव के लिए है । हमारा जीवन भी क्षण-भंगुर है और कोई यह नहीं कह सकता कि मुझे इतने काल तक जीवित रहना ही है । हमारे देखते-देखते बाल, युवा या वृद्ध कोई भी और कभी मी काल का ग्रास बन जाता है । २२ इसीलिए ज्ञानी पुरुष अज्ञानी प्राणियों की मोहनिद्रा भंग करने के लिए बारबार प्रयास करते हुए कहते हैं कि आत्म-साधना के लिए कल और परसों मत करो । अनेक व्यक्ति तो धर्म-कार्य वृद्धावस्था के लिए भी रख छोड़ते हैं । वे कहते हैं अभी तो हमारे खाने-पहनने और जीवन का आनन्द उठाने के दिन हैं । जब बुढ़ापा आ जाएगा तब धर्म - ध्यान कर लेंगे। पर क्या व्यक्ति इस बात की गारन्टी ले सकता है कि वृद्धावस्था आएगी ही ? और मान लो तब तक जीवित रह भी गये तो क्या शरीर और इन्द्रियाँ धर्म-साधना कर सकेंगी ? कभी नहीं, वृद्धावस्था के आ जाने पर धर्माराधन करने की कल्पना करना ही महामूर्खता है । शुभस्य शीघ्रम् किसी कवि ने तो स्पष्ट कहा है जौ लौं बेह तेरी काहू रोग सों न घेरी, जौ लौं जरा नाहि नेरी जासौं पराधीन परिहै । जौ लौं जम नामा बैरी देय न दमामा जौ लौं माने कान रामा बुद्धि जाइ न बिगारी है । तौ लौं मित्र मेरे ! निज कारज संवारि लं रे । पौरुष थकेंगे फेरि पीछे कहा करि है ? कहो आग आए जब झोंपरी जरनि लागी कुआ के खुदाए तब कौन काम सरि है ? -- कवि का कहना है – अरे मित्र ! जब तक इस शरीर को व्याधि ने नहीं घेरा है, जब तक वृद्धावस्था निकट नहीं आई है तथा यम नामक घोर दुश्मन ने अपना कूच का नगाड़ा नहीं बजाया है और जब तक बुद्धि सठिया नहीं गई है, तब तक अपनी आत्मा का हित करने वाले कार्यों को सम्पन्न कर लो, यानी जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य जो कि आत्म-कल्याण है, उसे पूरा करने का प्रयत्न कर लो। अन्यथा जब बुढ़ापा आ जाएगा तब पुरुषार्थ थक जाएगा कर सकोगे ? और उस स्थिति में फिर तुम क्या दोस्त ! तुम जानते ही हो कि झोंपड़ी में आग लग जाने पर अगर कोई कुआ खुदवाना प्रारम्भ करे तो उससे बढ़कर मूर्खता और क्या होगी ? क्या कुए को खुदने तक झोंपड़ी जल से बची होगी ? नहीं ! इसी प्रकार जब वृद्धावस्था Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy