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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
ही कुछ व्यक्ति लखपति या करोड़पति बनते हैं और अन्य व्यक्ति दरिद्र रहकर नंगे, भूखे रहकर बड़ी कठिनाइयों से जीवन गुजारते हैं। (२) मानधो वृत्ति
मानवी वृत्ति जिन मनुष्यों में पायी जाती है वे जो कुछ उपार्जन करते हैं या उनके पास जो कुछ होता है, उससे सन्तुष्ट रहते हैं । उनकी भावना यही होती है कि मेरे पास जितना है वही मेरा है और काफी भी है। अनीति तथा अन्यायपूर्वक वे औरों का धन या औरों का हक छीनने का प्रयत्न नहीं करते । उदाहरणस्वरूप पांडवों ने मानवी वृत्ति या मानवीय भावनाओं के अनुसार कौरवों से या दुर्योधन से यही कहा था- "हमें केवल हमारे हक की जमीन या राज्य दे दो, हम उतने से ही सन्तुष्ट रहेंगे।” पर जब दुर्योधन इसके लिए तैयार नहीं हआ तो उन्होंने केवल पाँच गाँव ही मांगे और कहा- "पूरा हक नहीं देना चाहते हो तो सिर्फ पांच गाँव दे दो। हम उनसे ही अपना काम चला लेंगे।"
उनकी ऐसी वृत्ति मानवी वृत्ति कहलाती है। इस वृत्ति के धारक व्यर्थ में झगड़े-झंझट करना पसन्द नहीं करते। वे अपने को अपना और दूसरों का जो कुछ होता है, उसे उनका समझते हैं । ऐसी वृत्ति भी अगर सब मनुष्यों में आ जाय तो संसार के सब व्यक्ति अपना भरण-पोषण शान्तिपूर्वक कर सकते हैं। (३) दैवी वृत्ति
दैवी वृत्ति बहुत कम मनुष्यों में पाई जाती है । जो व्यक्ति संसार की असारता को समझ लेते हैं तथा सांसारिक वस्तुओं की क्षणभंगुरता के कारण उनसे उदासीन हो जाते हैं, वे अपने धन, मकान, जमीन या अपने अधिकार में रही हुई वस्तुओं पर आसक्ति नहीं रखते । समय आने पर ऐसे व्यक्ति अपना सब कुछ भी अन्य जरूरतमन्दों को सहज ही दे दिया करते हैं । ऐसे महापुरुषों को आप कहते भी हैं—“यह देवता पुरुष हैं।" अकेली गाय क्या ले जा रहा है ?
__ कहा जाता है कि एक बार संत तुकाराम के यहाँ एक चोर चोरी करने के इरादे से आया । तुकाराम उस समय जाग रहे थे, किन्तु वे कुछ नहीं बोले, चुपचाप नींद का बहाना किये पड़े रहे । उन्होंने सोचा- 'बेचारा बड़ी आशा से आधी रात में कष्ट करके आया है तो अच्छा है, इसे जो कुछ पसन्द आए वह ले जाय ।"
चोर ने चुपचाप सारे घर को देखा और बर्तन वगैरह टटोल डाले। किन्तु तुकाराम के यहाँ था ही क्या जो चोर चुराता । धन के नाम से उनके पास कुछ भी
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