________________
धर्मो रक्षति रक्षितः
नुसार मिला हुआ मानकर सन्तोष रखे तथा जितना भी बन सके आगे के लिए शुभकर्मों का संचय करे। पर यह तभी होगा जबकि वह अपने जीवन को धर्ममय बनाये रखे तथा कैसी भी परिस्थितियाँ क्यों न सामने आयें धर्म-पथ से विचलित न हो। व्यक्ति को दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि धर्मानुसार चलने से कभी भी आत्मा का अहित नहीं होता तथा भविष्य में दुःख-प्राप्ति की संभावना नहीं रहती।
तारीफ की बात तो यह है कि धर्म के प्रताप से उसे अगले जन्मों में तो सुख हासिल होता ही है, इस जन्म में भी सभी भौतिक सुखों की उपलब्धि हो जाती है।
__ संस्कृत के एक श्लोक में बताया गया है कि धर्म के प्रभाव से मानव इस जन्म में भी जो सांसारिक सुख होते हैं, उन्हें प्राप्त कर लेता है। ये सुख मुख्य रूप से सात प्रकार के माने गये हैं और इस प्रकार हैं
आरोग्यं प्रथम द्वितीयकमिदं लक्ष्मीस्तृतीयं यशः । पूर्णस्त्री पतिचित्तगाश्च विनयी पुत्रस्तथा पंचमः ॥ षष्ठो भूपति सौम्यदृष्टिरतुला, वासोऽभयं सप्तमं ।
सप्तैतानि सुखानि यस्य भवने धर्मप्रभावंस्फुटं ॥ श्लोक में बताया है कि आरोग्य, लक्ष्मी, यश, पतिव्रता स्त्री, विनयी पुत्र, प्रजापालक राजा एवं भयरहितता, ये सातों सुख जिसे प्राप्त हुए हैं वे धर्म की शक्ति और प्रभाव से ही प्राप्त हुए हैं, यह निश्चय रूप से मानना चाहिए । अब हम इन सातों का संक्षिप्त वर्णन करेंगे।
१. पहला सुख निरोगी काया यह उक्ति आप अनेकों बार कहते हैं और दूसरों से सुनते भी हैं। वास्तव में इस संसार के भौतिक सुखों में से सबसे बड़ा सुख शरीर का निरोग रहना है । भले ही व्यक्ति को धन-सम्पत्ति, स्त्री-पुत्र आदि अनेक प्रकार के सुख प्राप्त हो जायँ किन्तु शरीर से वह रोगी और निर्बल बना रहे तो अन्य सभी सुख उसके लिए नहीं के बराबर होते हैं।
उदाहरण स्वरूप एक व्यक्ति के पास लाखों की सम्पत्ति है, किन्तु उसे संग्रहणी हो गई है और डाक्टर ने केवल छाछ-रोटी पर रहने के लिए आदेश दिया है तो वह सम्पत्ति उसे क्या सुख पहुँचाएगी? जीभ को स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ मिलें, इसीके लिए तो व्यक्ति नाना प्रकार के अनैतिक कार्य करके भी धन इकट्ठा करता है किन्तु जब केवल छाछ-रोटी या पालक की भाजी खाकर ही रहना पड़े तो वह धन फिर किस काम का?
यह तो हुई शरीर के निरोग रहने पर सांसारिक सुखों के उपभोग की बात । पर अब हमारे सामने आध्यात्मिक सुख-प्राप्ति की बात भी आती है। आप जानते ही हैं कि परलोक में सुख प्राप्त करने के लिए भी शरीर का स्वस्थ और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org