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तप की ज्योति
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तपस्वी ही कर सकते हैं । और तपस्वी भी वे ही नहीं जो केवल अनशन को तपस्या मानकर चलते हैं, अपितु वे तपस्वी जो आंतरिक एवं बाह्य, सभी तपस्याओं को समान समझते हुए उनकी यथाशक्ति आराधना करते हैं तथा सभी परिषहों को पूर्ण समभाव पूर्वक सहन करते हुए दृढ़तापूर्वक संवर के मार्ग पर चलते हैं।
सच्चे तपस्वी संवर को अपनाकर कर्मों का आना तो रोकते ही हैं, साथ ही तप के द्वारा संचित कर्मों की निर्जरा कर लेते हैं। परिणाम यह होता है कि उनकी आत्मा कर्म-मुक्त होकर अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेती है। अभी मैंने आपको बताया थाभवकोडी-संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ।
उत्तराध्ययन सूत्र ३०-६ साधक करोड़ों भवों से संचित कर्मों को तपस्या के द्वारा क्षीण कर देता है।
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