SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मो रक्षति रक्षितः धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! प्राचीन काल में हमारे भारतवर्ष को आर्यावर्त कहा जाता था क्योंकि इस भारतभूमि पर आर्यों का निवास था। आर्य कौन कहलाते थे ? जिन आर्यों के कारण भारत को आर्यावर्त कहा जाता था, वे कैसे होते थे, यह जानने की जिज्ञासा प्रत्येक व्यक्ति को हो सकती है। अतः उनके विषय में संक्षिप्त रूप से यही कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति जो हेय कार्यों से दूर रहकर धर्म का यथाशक्ति आचरण करते थे वे शिष्ट और संस्कारी पुरुष ही आर्य कहलाते थे तथा उनके इस भूमि पर निवास करने के कारण भारत की भूमि धर्मभूमि कहलाती थी। इस देश के लोग धर्म को प्राणों से भी प्रिय मानते थे तथा अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की क्रियाओं में धर्म की भावना सतत् बनाये रखते थे। उन आर्यों के लौकिक आचार-विचार में भी धर्म का पुट सदा विद्यमान रहता था तथा धर्म से भिन्न वे किसी व्यवहार-आचरण की कल्पना नहीं करते थे। भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसे अनेक धर्मवीरों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अपने सर्वस्व का त्याग करना उचित समझा किन्तु धर्म का परित्याग करना कदापि ठीक नहीं माना। अनेकों व्यक्तियों ने तो अपने प्राणों का उत्सर्ग करके भी धर्म की रक्षा का प्रयत्न किया था । उनका दृढ़ विश्वास था कि धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः । अर्थात् जो अपने धर्म का विनाश करता है, उसका नाश हो जाता है और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा होती है। यहाँ रक्षा से अभिप्राय शरीर अथवा सम्पत्ति आदि की रक्षा से नहीं है वरन् आत्मा की रक्षा से है । इससे स्पष्ट है कि धर्म का त्याग करने वाले प्राणी की आत्मा कर्मों के भार से लद जाती है तथा अनन्तकाल तक संसार-परिभ्रमण करती हुई नाना प्रकार की यातनाओं को भोगती है। उसे उन यातनाओं से बचाने में कोई भी . समर्थ नहीं होता यानी उन कष्टों से कोई भी आत्मा की रक्षा नहीं कर सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy