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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
जीवन में उसे पूरा नहीं कर पाता और उसके मरने पर दूसरा, तीसरा और इसी प्रकार कई बुद्धिशाली वैज्ञानिक अपने सम्पूर्ण जीवन को एक ही खोज में समाप्त कर देते हैं । एक का स्थान दूसरा लेता है, दूसरे का तीसरा और इसी प्रकार क्रम चलता रहता है । आज कई राष्ट्र चन्द्रलोक तक अपने रॉकेट आदि भेज रहे हैं, नित नए ऐसे बमों का आविष्कार कर रहे हैं जो अत्यल्प काल में ही अनेक नगरों को वीरान बनाने की सामर्थ्य रखते हैं । पर ये सब सफलताएं क्या किसी एक व्यक्ति के जीवन काल में मिल सकी हैं ? नहीं । वर्षों प्रयत्न करने पर और अनेकों व्यक्तियों के जीवन समाप्त हो जाने पर आज ऐसे बड़े-बड़े आविष्कार राष्ट्र कर पाए हैं।
मेरा आशय कहने का यही है कि जब भौतिक सफलताओं की सिद्धि में भी वर्षों लग जाते हैं और अनेक व्यक्तियों की जिन्दगियाँ उनमें क्रमशः समाप्त हो जाती हैं तो फिर मोक्ष जैसी सिद्धि को हासिल करने में कई जन्म लग जाएँ तो क्या बड़ी बात है ? भगवान महावीर ने स्वयं सत्ताईस जन्मों तक प्रयत्न किया, और तब कहीं जाकर उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति हुई। बृहत्कल्प भाष्य में कहा गया हैजहा जहा अप्पतरो से जोगो,
तहा तहा अप्पतरो से बन्धो। निरुद्धजोगस्स व से ' ण होति,
छिद्द पोतस्स व अंबुणाधे ॥ अर्थात्-जैसे-जैसे मन, वचन और काया के योग अल्पतर होते जाते हैं, वैसे-वैसे बन्ध भी अल्पतर होता जाता है। योगचक्र का पूर्णतः निरोध होने पर आत्मा में बन्ध का सर्वथा अभाव होता जाता है। जैसे कि समुद्र में रहे हुए छिद्र रहित जहाज में जल का आगमन नहीं होता।
आशा है आप समझ गए होंगे कि आत्मा का कर्मों से पूर्णतया मुक्त होना कितना कठिन है और इसके लिए मन, वचन एवं शरीर पर कितना संयम रखना होता है। निविड़ कर्मों का बन्ध होने पर संवर के द्वारा नवीन कर्मों के आगमन को रोकना तथा उत्कृष्ट तप एवं साधना के द्वारा पूर्व कर्मों की निर्जरा करना कितना कष्टसाध्य श्रम है और यह कितने जन्मों का परिश्रम माँगता है।
तो चित्त को भी आत्म-मुक्ति के इसी प्रयत्न में अगले जन्म में भी संयम लेना पड़ा । किन्तु उनके भाई संभूति ने तो अपनी साधना के बदले चक्रवर्ती राजा होने का निदान कर लिया था अतः वे चक्रवर्ती राजा बने और ब्रह्मदत्त के नाम से जाने गये। इधर चित्त मुनि ने उग्र साधना की और जब अपने ज्ञान से जाना कि मेरा पूर्व जन्म का भाई ब्रह्मदत्त राजा बनकर सांसारिक भोगों में निमग्न हो गया है तो उन्हें तरस
सति
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