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________________ आनन्द प्रवचन | छठा भाग पुत्र अभयकुमार मन्त्रिपद पर आसीन थे । अभय कुमार जी बड़ी विचक्षण बुद्धि के धनी इसीलिये उन्हें राज्य का मन्त्रित्व दिया गया था । २०४ श्रेणिक महाराज का ऐशोआराम में समय व्यतीत हो रहा था । एक दिन उनके विश्वासपात्र कर्मचारी ने उनके सन्मुख पान का बीड़ा उपस्थित किया । महाराज ने पान लिया और मुँह में रखा किन्तु उसे चबाते ही उनकी जबान में जलन हो गई । पान के द्वारा जीभ में जलन महसूस होते ही उन्हें लगा कि पान लगाने वाले कर्मचारी ने शायद मुझे इसमें कोई घातक वस्तु दी है और इस प्रकार यह मुझे मारना चाहता है । उन्होंने पान अविलम्ब थूक दिया, बार-बार कुल्ला किया और उसी कर्मचारी को आज्ञा दी कि 'पाव भर चूना लेकर आओ ।' पान लगाने वाला भृत्य घबराकर वहाँ से चला पर संयोगवश राजमहल से बाहर निकलते ही उसकी मुलाकत मन्त्री अभयकुमार से हो गई । भृत्य ने उन्हें नमस्कार किया जैसा कि सदा ही करता था । किन्तु मैंने आपको बताया है न कि अभयकुमार जी बड़े विचक्षण थे अतः उसके चेहरे को देखकर ही भांप गये कि कुछ विशेष बात है । उन्होंने पूछ ही लिया - "क्या बात है भाई ! इस प्रकार घबराए हुए कैसे हो और इतनी शीघ्रता से कहाँ जा रहे हो ?” “मन्त्रिवर ! महाराज ने कलीदार चूना मँगाया है, वही लेने जा रहा हूँ ।" "क्या इससे पहले भी कभी महाराज ने तुमसे चूना मँगाया था ?" "नहीं, पहले तो कभी नहीं मँगाया, आज ही आज्ञा दी है ।" मन्त्री अभयकुमार ने कुछ क्षण सोचा और बोले - "क्या आज पान लगाते समय तुम्हारा मन स्थिर नहीं था ?" कर्मचारी इस प्रश्न पर चकराया किन्तु उत्तर में बोला - "आप की कल्पना सत्य है मन्त्री जी ! मेरी घरेलू परिस्थिति इस समय इतनी खराब हो गई है कि सत्य ही मेरा मन पान लगाते समय स्थिर नहीं था, अशांत था ।" अब मन्त्री बोले – “देखो! मन की अशांति के कारण तुमने पान में चूना कुछ अधिक लगा दिया होगा, अतः जो चूना तुम लाने जा रहे हो, वह तुम्हें ही खाना पड़ेगा । इसलिये ऐसा करो कि पहले तुम मक्खन ले लेना और फिर उसके ऊपर थोड़ा सा चूना डालकर पाव सेर के वजन का ले आना ।" कर्मचारी ने वैसा ही किया। यानी मक्खन के ऊपर कुछ चूना डालकर राजा के सम्मुख उपस्थित हो गया । राजा ने एक शस्त्रधारी सैनिक को बुलाया और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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