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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
यह सुनकर हिरणी बेचारी आँखों में आँसू भरकर बोली - "ठीक है, पर तुम इतना करो कि एक बार मुझे अपने बच्चों के पास जाने दो। मैं उनसे कहकर आती हूँ कि अब वे कभी मेरा इन्तजार न करें ।”
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भील बड़ा सरल और निष्कपट व्यक्ति था । उसने हिरणी को जाने की अनुमति दे दी, पर कह दिया
" शीघ्र लौटकर आना, मुझे घर पहुँचने में देर हो रही है ।" हिरणी यह सुनकर चौकड़ियाँ भरती हुई एक ओर को चल दी ।
पर कुछ ही काल बीता था कि उसी तालाब पर एक हिरण पानी पीने आ गया । उसे देखकर भी भील ने पुनः धनुष-बाण चढ़ाया पर संयोग कि फिर एक बेलपत्र पेड़ से टूटा और उसके धनुष से टकराकर शिवलिंग पर गिर गया ।
बेचारा भील सोचने लगा- - "आज क्या बात है कि मेरे द्वारा भगवान शिव की पूजा बेलपत्र से फिर इस दूसरे प्रहर में हो गई है ?" पर उसी समय हिरण डरता हुआ उससे बोल उठा – “भाई ! मुझे थोड़ी सी देर के लिए अपनी पत्नी और बच्चों से मिल आने दो, मैं वापिस आऊँगा तब खुशी से मुझे मार डालना ।" भील ने हिरण की बात भी मान ली और उसे भी जाने दिया ।
अब दिन का तीसरा प्रहर होने आया और भील ने फिर कुछ हिरण और हिरणियों को तालाब की ओर आते देखा । उसने सोचा - " इस बार तो एक-दो को मार ही लूंगा और यह सोचते-सोचते उसने धनुष पर बाण चढ़ाया ।
पर महान आश्चर्य की बात हुई कि उसके धनुष सीधा करते ही तीसरी बार बेलपत्र गिरा और उसके धनुष से टकराकर शिवलिंग पर गिर गया ।
इधर हिरण और हिरणियों ने जब भील को धनुष पर बाण चढ़ाए देखा तो हिरण बोले – “भीलराज ! तुम हमें मार डालो पर इन हिरणियों को जाने दो ।"
भील चकित होकर पूछ बैठा - "ऐसा क्यों ? तुम क्यों मरना चाहते हो ?”
उत्तर में एक हिरण बोला- “प्रथम तो हम हिरणियों की जान बचाएँगे, यह बड़ा पुण्य कार्य होगा, दूसरे इनके बच्चे अपनी माताओं के बिना जीवित नहीं रह सकेंगे, वे भी मर जाएँगे तो उनकी जानें भी हमारे मरने से बच जाएँगी ।"
हिरणों की बात सुनकर भील ने अपने धनुष को हिरणों की दिशा में घुमाया किन्तु उसी समय हिरणियाँ व्याकुल होकर बोल पड़ीं - "अरे ! अरे !! यह क्या कर रहे हो ? हमारे रहते इन लोगों को मत मारो। ये हमारे पति हैं । पति के बिना स्त्री का जीवन व्यर्थ है । दूसरे अपनी जान देकर जो स्त्री अपने पति की प्राणरक्षा
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