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यह चाम चमार के काम को नाहि
चितामणि होय जहाँ दारिद्र न रहे रंध,
घनंतर आये मेटे, वेदन कराल को | करम को न रहे अंश, अमीरिख जपत त्रिकाल को ॥
तैसे जिन नाम से ऐसे प्रभु
Safar का कथन है कि भगवान का नाम लेने से समस्त विघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं और दुःख नष्ट होते हैं । उनका कहना है कि - जिस प्रकार गरुड़ की आवाज से सर्प घबरा जाता है, सूर्य के उदित होने पर भयंकर अन्धकार नष्ट हो जाता है, वर्षा होने पर अकाल मिट जाता है, चिंतामणि रत्न की प्राप्ति हो जाने पर दरिद्रता का लेश भी नहीं रहता तथा धन्वंतरि वैद्य के आ जाने पर मरणांतक वेदना भी दूर हो जाती है, इसी प्रकार जिन देव प्रभु के नाम से यानी भगवान का स्मरण करने से समस्त कर्मों का क्षय हो जाता है ।
रहे होंगे ।"
पूजा का प्रभाव एक लघु कथा में बताया जाता है कि किसी गहन वन में एक भील रहा करता था । वह बड़ा गरीब था और सम्पत्ति के नाम पर उसके पास केवल एक धनुष-बाण था । जिसके द्वारा वह पशु-पक्षियों को मारता था और उनके मांस से अपने परिवार का पेट भरता था ।
एक दिन वह धनुष-बाण लेकर वन में गया किन्तु बहुत देर तक मटकते रहने पर भी उसे कोई शिकार न मिल सका । वह बहुत थक गया था अतः बहुत उदास होकर वह एक तालाब के समीप बने हुए मन्दिर के चबूतरे पर बैठ गया । अचानक ही उसकी दृष्टि तालाब के एक किनारे की ओर गई जहाँ एक हिरणी पानी पी रही थी । भील ने अत्यन्त प्रसन्न होकर धनुष पर बाण चढ़ाया किन्तु ठीक उसी समय चबूतरे पर छाये हुए पेड़ से एक बेल पत्र टूटा और भील के धनुष से टकराकर शिवलिंग पर जा गिरा। भील ने यह देखा और मन में सोचा - "मुझ पर आज शिव की महान् कृपा हुई दिखाई देती है कि ज्योंही मुझे शिकार मिला है। स्वयं ही भगवान की बेल-पत्र से पूजा भी हो गई है । "
किन्तु इधर हिरणी ने ज्योंही भील को धनुष पर बाण चढ़ाए देखा तो घिघियाकर बोली
" भीलराज ; मुझे क्यों मारते हो
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मेरे छोटे-छोटे बच्चे तो मेरी प्रतीक्षा कर
" तो मैं क्या करूँ ? आज मुझे भी कोई शिकार नहीं मिला है और मेरे मातापिता भी सुबह से भूखे हैं । वे भी तो मेरा इन्तजार करते होंगे ।" भील ने उत्तर
दिया ।
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