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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
पर ऐसा होता कहाँ है ? आपको प्रथम तो धन इकट्ठा करने की चिन्ता से ही मुक्ति नहीं मिलती और अगर कुछ समय मिलता है तो उसे आप आपसी वैमनस्य को बढ़ाने में निरर्थक कर देते हैं । इसके अलावा भाग-दौड़ करके अधिक श्रम करना आप अपनी श्रीमंताई के खिलाफ समझते हैं यानि अपनी पोजीशन के लिये हेय मानते हैं । किन्तु यह उचित नहीं है । आपके समक्ष एक दोहा रख रहा हूँ, जिसमें कहा गया है
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सज्जन सम्पत पायके, और न रखिये चित्त । ये तीनों न विसारिये, हरि, अरि अपनो मित्त ॥
दोहे में जीवन को सुन्दर बनाने के लिए बड़ी उत्तम सीख दी गई है तथा कहा है – “भाई ! तुम सम्पत्ति प्राप्त करने पर और सब बातें भले ही भूल जाओ किन्तु हरि, अरि और मित्र इन तीनों को कभी मत भूलना ।"
न भूलने वाली बातों में सर्वप्रथम हरि का उल्लेख किया गया है । हरि अर्थात् भगवान । चाहे हम उन्हें महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण अथवा किसी भी नाम से पुकारें किन्तु सुख या दुःख में कभी भी उन्हें विस्मरण न करें । आप कहेंगे भगवान तो निरंजन और निर्विकार हैं, वे हमें किस प्रकार सहायता दे सकते हैं ? पर आप जानते हैं कि लकड़ी निर्जीव होने पर भी लाखों व्यक्तियों के चलने में सहायक बनती है, इसी प्रकार भगवान का स्मरण हमारे मानस को शांत, निष्कपट और स्थिर बनाता हुआ शुद्धि की ओर बढ़ाता है। भगवान का स्मरण करने पर ही मन में जिज्ञासा होती है कि उन्होंने किन गुणों को अपनाकर तथा किस प्रकार त्याग एवं तप का मार्ग ग्रहण करके स्वयं को संसार-मुक्त बनाया था ? महापुरुषों की जयन्तियों को मनाने का उद्देश्य भी तो यहीं होता है कि उस दिन हम उन्हें स्मरण करें तथा उनके गुणों को अपने जीवन में भी उतारने का संकल्प करें ।
जो मुमुक्षु होते हैं वे ईश - चिन्तन में ही अपना अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं और वास्तव में ही भगवान के नाम में इतनी शक्ति होती है कि पापी पापी व्यक्ति भी अगर सच्चे हृदय से प्रार्थना और भक्ति में लीन हो जाता है तो अपने कर्मों को नष्ट कर सकता है ।
पूज्य श्री अमीऋषिजी म० ने अपने एक पद्य में भगवान का नाम लेने से कितना लाभ होता है, यह बताया है । पद्य इस प्रकार है
प्रभु नाम लिए सब विघन विलाय जाय,
गरुड़ शब्द सुन त्रास होय व्याल को । महामोह तिमिर पुलाय ज्यों दिनेश उदे, मेघ बरसत दूर करत दुकाल को ॥
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