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समाज रूपी शरीर के रोग
लिए दहेज के रूप
हमारे समाज- शरीर में सबसे बड़े रोग कुप्रथाओं के रूप में हैं । जिनके कारण इसके अधिकांश सदस्य चिन्तित और पीड़ित रहते हैं । इन कुप्रथाओं में भी सबसे बुरी प्रथा दहेज लेने की है । पहले समाज में लोग लड़की का पैसा लेते थे किन्तु इसे अत्यन्त निकृष्ट बताकर सन्तों ने अपने उपदेशों द्वारा इसे मिटाने का प्रयास किया । इस सम्बन्ध में सफलता भी मिली और नब्बे फीसदी लोगों ने लड़की का पैसा लेना बन्द कर दिया । पर उसके बदले लोगों ने लड़कों के में धन लेना प्रारम्भ कर दिया । परिणाम यह हुआ है कि जिसके हैं, वे बेचारे जीवन भर जी-तोड़ परिश्रम करते हैं और पैसे पैदा करने का प्रयत्न करते हैं, किन्तु इतने पर भी वे लड़कियों के लिए दहेज नहीं जुटा पाते और उनके ससुराल वालों के ताने तथा व्यंग-वचन सुनने के लिए बाध्य हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में आप ही बताइये कि उन लड़की वालों के मन की कैसी दशा रहती होगी ? क्या वे अपने जीवन में कभी सुख एवं चैन का अनुभव कर सकते होंगे ? नहीं । इसलिए आपको सर्वप्रथम तो समाज के इस भयंकर रोग को मिटाना चाहिए ।
कई लड़कियाँ होती
इस बात को लेकर अनेक श्रीमंत व्यक्ति कहते हैं - " अगर हम ब्याह-शादी में पैसा खर्च नहीं करेंगे तो बदनामी होगी और हमारा नाम कैसे होगा ? अरे भाई ! क्या लाखों रुपया बर्बाद करने से ही व्यक्ति का नाम होता है ? हमारे अमोलक ऋषि जी म. के एक परमभक्त हैदराबाद के परमसहाय नामक व्यक्ति के ब्याह में एक लाख और उनके पुत्र के विवाह में ढाई लाख रुपया खर्च हुआ था । पर यह कभी आपने सुना क्या ? नहीं सुना होगा । किन्तु उन्होंने ही बयालीस हजार रुपया खर्च करके धार्मिक पुस्तकें छपवाई और हर एक गाँव में पेटी भिजवाई | इसलिए उनका नाम हमेशा के लिए रह गया ।
तो बन्धुओ, दहेज प्रथा रूपी यह सबसे बड़ा रोग समाज के अनेक सदस्यों को पीड़ित करता रहता है । अतः इसे मिटाने का आप सभी को मिलकर प्रयत्न करना चाहिए । अगर यह भयानक रोग समाज से निकल जाता है तो अनेकों व्यक्ति निश्चिन्तता की सांस ले सकते हैं तथा शांतिपूर्वक अपनी जिन्दगी बसर कर सकते हैं ।
आनन्द प्रवचन | छठा भाग
समाज में मौसर की प्रथा भी बड़ी घातक थी । कुछ समय पहले तक लोग एक-एक मौसर में हजारों लाखों रुपए खर्च करके जीवन भर के लिए कर्ज से दब जाया करते थे । आजकल तो फिर भी यह कुरूढ़ि काफी कम हो गई है । क्योंकि मंहगाई अत्यधिक बढ़ जाने से खाना खिलाना कठिन हो गया है ।
इस युग में तो अब जिस रोग ने समाज में घर किया फूट । इस फूट ने अनेक रूप धारण करके समाज को रोगी बना
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है, वह है आपसी रखा है । मनुष्य
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