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यह चाम चमार के काम को नाहि
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इन्तजाम हो रहा है । तेली ने भी अपने बैल को दौड़ के लिए नियुक्त कर दिया तथा जीतने पर एक हजार रुपया लेने की शर्त राजा से
कर ली ।
बैलों की दौड़ हुई और सचमुच ही तेली का बैल जीत गया । शर्त के अनुसार राजा ने तेली को एक हजार रुपये दे दिए । पर इधर तेली का रूपए हाथ में लेना था कि उधर उसका बैल जमीन पर गिर पड़ा और प्राणहीन हो गया ।
यह देखकर राजा से ऋण में धन लेने वाले व्यापारी की आँखें खुल गईं । वह उसी क्षण भागा हुआ राजा के समक्ष पहुँचा और उसका सम्पूर्ण धन वापिस करते हुए तेली के बैलों की कथा कहते हुए बोला
"हुजूर ! मैंने देखा है कि बैल पशु हैं पर उन्हें भी पिछले जन्मों का ऋण तेली को चुकाना पड़ा । मैं आपसे धन ले गया था और कसूर माफ करें तो कहता हूँ कि मेरे हृदय में बेईमानी आ गई थी । मैं सोचता था कि इस धन से आनन्दपूर्वक जीवन बिताऊँगा और मैं तो ऋण आपको चुकाऊँगा नहीं तथा मेरे फिर आप यह कर्ज वसूल नहीं कर सकते थे, क्योंकि मेरे औलाद आज इन बैलों ने मेरी आँखें खोल दी हैं । अतः आप अपना धन कृपया पुनः स्वीकार कीजिए क्योंकि इस जन्म में तो मैं यह कर्ज उतार नहीं सकता और अगले जन्मों तक कर्जे के बोझ को ढोना मुझे उचित नहीं लगता । बेईमानी के द्वारा आपका इतना धन हड़पने पर मेरे न जाने कितने कर्म बंधेंगे और न जाने कितनी और किन-किन योनियों में जाकर मुझे आपका कर्जा चुकाना पड़ेगा ।"
तो बंधुओ, प्रसंगवश मैंने आपको कर्मों के विषय में बताया है कि उन्हें भोगे बिना कभी उनसे छुटकारा नहीं मिलता चाहे उस बीच में कितने भी जन्म क्यों न लेने पड़ें । वैसे हमारा मूल विषय समाज रूपी शरीर को लेकर चल रहा था और मैं आपको यह कहने जा रहा था कि मनुष्य को अपने इस शरीर के समान ही समाजरूपी शरीर का भी ध्यान रखना चाहिए ।
मरने पर भी नहीं है । किन्तु
अपने शरीर के किसी अंश में अगर पीड़ा होती है तो हम अविलम्ब औषधि लेते हैं, इसी प्रकार समाज रूपी शरीर में अर्थात् समाज के किसी भी सदस्य के दुखी होने पर हमें पीड़ा होनी चाहिए और उसके निवारणार्थ प्रयत्न करना चाहिए । अपने शरीर का सौन्दर्य निखारने के लिए जिस प्रकार हम सावधान रहते हैं, उसी प्रकार समाज के सभी सदस्यों का मन निर्मल और निर्दोष बने तथा उसे सच्चे सौन्दर्य का रूप दिया जा सके। इसके बारे में सतत जागरूक रहना चाहिये । स्पष्ट है कि जिस प्रकार शरीर के सभी अंग रहित होते हैं तो शरीर नीरोग कहा जा सकता है, इसी प्रकार सदस्य के खुशहाल एवं निश्चित रहने पर ही समाज रूपी शरीर स्वस्थ कहा जा सकता है ।
रोग एवं पीड़ा समाज के प्रत्येक
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