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________________ समाज बनाम शरीर १८७ इन्सान के नाते कष्ट नहीं दिया। अपना राजमहल भले ही टेढ़ा-मेढ़ा बनवा लिया। इस पर फारसी भाषा में एक कवि कहता है बरनामवर बजेरे जमीं दफ्न करदां अन्त, कदहस्तिये जमीं पर न शान मार । आखिर नाशाला कि सुपर जेरे बंद खाक, खाकश चुनावो खुर्द करो-खुश्नानावोखा ॥ बादशाह नौशेरवान कीर्तिवान, यशस्वी तथा नेकी के रास्ते पर चलने वाला था। पर मरने के बाद उसे भी जमीन में गढ़ना पड़ा, कोई नामो-निशान उसका बाकी नहीं रहा । इसी प्रकार वह बुढ़िया जिसने राजमहल के लिये जमीन नहीं दी और इतिहास में अपना नाम काले अक्षरों में लिखवाया, क्या वह इस संसार में जिन्दा रह गई ? नहीं। उसे भी मरना पड़ा। यानी बादशाह और वह वृद्धा, दोनों ही जमीन में दफन हुए। फिर जीवित कौन है ? जिसने अच्छा काम किया और लोग श्रद्धा या प्रशंसापूर्वक जिसका नाम लेते हों। वर्षों बीत गये किन्तु नौशेरवाँ बादशाह आज भी जीवित है, क्योंकि लोग उसे सम्मानपूर्वक एक नीतिवान तथा न्यायी के रूप में स्मरण करते हैं। वस्तुत: उसी मनुष्य का जीवन सार्थक है जो अपने जीवन काल में उत्तम कार्य करते हैं तथा उत्तम गुणों को अपनाकर अपना मानव-जन्म सार्थक कर लेते हैं । ___ बन्धुओ, हम सबने भी इस पृथ्वी पर जन्म लिया है, और जन्म लिया है तो एक दिन मरना भी अवश्य पड़ेगा। तो क्या हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे हमें मरने के बाद भी लोग याद करें । प्रश्न होता है कि वे कार्य क्या हो सकते हैं जिनके करने से लोग मरने के बाद भी याद करते हैं ? उत्तर में यही कहा जा सकता है कि अगर व्यक्ति समाज के प्रत्येक सदस्य के प्रति समवेदना और सहानुभूति रखते हुए एक-दूसरे को सहयोग दे, प्रत्येक अभावग्रस्त व्यक्ति के अभाव की पूर्ति करने का प्रयत्न करे, पीड़ित व्यक्ति की सेवा करने में कभी पीछे न रहे तथा सामाजिक कुरीतियों को, कुप्रथाओं को और साम्प्रदायिक विष को निर्मूल करने का प्रयत्न करे। ऐसा करने पर ही समाज में सहृदयता का फैलाव होगा तथा धर्म टिक सकेगा। ध्यान में रखने की बात है कि व्यक्ति व्यवहार जगत में इन सब कार्यों को करते हुए अपनी आत्मा के कल्याण को भी न भूले । समाज और देश का भला करने के साथ-साथ वह अपनी आत्मा के भले को भी न भूले । हमारी आत्मा भी तो अनन्त काल के कर्मों के चक्कर में पड़ी हुई नाना योनियों में भ्रमण कर रही है और असीम दुःख का अनुभव करती रही है। अतः इसे कर्म-मुक्त करना ही हमारा सर्वोपरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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