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________________ १८६ आनन्द प्रवचन | छठा भाग एक बार उसने अपने लिये एक विशाल महल बनवाने का विचार किया। इस विचार को क्रियान्वित करने पर मालूम हुआ कि जिस विशाल भूमि पर महल बनने जा रहा है, उसमें अनेकों व्यक्तियों के मकान हैं। यह जानकर बादशाह ने हुक्म दिया कि महल जहाँ बनने जा रहा है, वहाँ जिन-जिन व्यक्तियों के मकान हैं, उन सभी प्रजाजनों को मुंहमांगे दाम दो, जिन्हें दूसरे मकान चाहिये, मकान दो, जो जमीन लेना चाहें दुगुनी-चौगुनी जमीन देकर संतुष्ट करो । आशय यह कि किसी को भी दुखी या असंतुष्ट मत होने दो तथा उनके मकानों के बदले में इतना कुछ दो कि वे परम प्रसन्नता पूर्वक अपने मकान, महल बनाने के लिये दे सके । बादशाह के हुक्म का यथाविधि पालन हुआ और लोगों ने मुंहमांगा धन, जमीन या अन्य मकान लेकर सहर्ष अपने मकान छोड़ दिये । किन्तु एक बुढ़िया अपनी झोंपड़ी छोड़ने के लिये तैयार नहीं हुई। ____ जब बादशाह को इस बात का पता लगा तो वे स्वयं उस वृद्धा के पास आए और बड़ी नम्रता तथा प्रेमपूर्वक बोले-"माँजी ! महल बनाने में तुम्हारी झोंपड़ी से बाधा पड़ती है अतः तुम भी और लोगों के समान जितना भी चाहो धन ले लो या अन्य स्थान पर जमीन या मकान, जो भी इच्छा हो माँग लो। मैं तुम्हें तनिक भी अप्रसन्न नहीं करना चाहता, तुम्हारी प्रसन्नता से तुम्हारे पसंद की वस्तु देकर ही यह झोंपड़ी लेना चाहता हूँ।" पर बुढ़िया बड़े अजीब और कर्कश स्वभाव की थी। उसने बादशाह का लिहाज नहीं किया और मंहतोड़ उत्तर दे दिया- "मैं किसी भी कीमत पर अपनी झोंपड़ी तुम्हारा राजमहल बनवाने के लिए नहीं दूंगी। यह मेरी जमीन है अतः तुम्हें नहीं मिलेगी । तुम राजमहल बनवाओ, चाहे मत बनवाओ।" बादशाह यह सुनकर बोले- "वृद्धा माँ ! जैसी तुम्हारी इच्छा हो करो । तुम नहीं देना चाहती हो तो मैं जबर्दस्ती तुम्हारी झोंपड़ी अपना महल बनवाने के लिये नहीं लूंगा।" यह कहकर वे चले गये और अपने कर्मचारियों से बोले-"बुढ़िया की झोंपड़ी को यथास्थान खड़ी रहने दो, भले ही महल कुछ टेढ़ा बने कोई बात नहीं।" यही हुआ भी । नौशेरवाँ का महल बुढ़िया की झोंपड़ी के कारण उस स्थान पर टेढ़ा ही बना। बन्धुओ ! अगर आज का युग होता तो कोई बादशाह, राजा या सरकार ही सही, किसी बुढ़िया की ऐसी गुस्ताखी बर्दाश्त करता? नहीं, कुछ मिनटों में ही बूढ़ी को झोंपड़ी से निकाल कर बाहर कर दिया जाता । किन्तु नौशेरवाँ सच्चा मानव था, न्यायी था, नीतिवान था और सफल शासक था। अतः उसने बुढ़िया को भी एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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