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समाज बनाम शरीर
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है ? नहीं, सभी में कुछ न कुछ नुख्स पाया जाता है। कोई अज्ञान से व्याप्त है, कोई प्रमाद से पीड़ित है, कोई धनाभाव को रोता है, कोई ईर्ष्या-द्वेष का शिकार है और कोई धर्मान्धता के विष से मतवाला है। कहाँ तक गिनाया जाय, आज के युग में हमारा समाज अनेकानेक बुराइयों का और कमिमों का घर बनकर रह गया है । न कोई किसी की सुनता है और न ही दूसरे की सहायता करता है । बस-'अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग ।' यही कहावत चरितार्थ हो रही है ।
पर ऐसा होना नहीं चाहिए । व्यक्ति अगर अपने सुख और दुःख के विषय में विचार करता है तो उसे दूसरे के सुख और दुःख का भी ध्यान रखना चाहिए । आज समाज की स्थिति देखकर मेरा अन्तःकरण बहुत ही क्षुब्ध होता है, लगता है किस प्रकार इसका कल्याण होगा, किस प्रकार यह अपने सुन्दर संस्कारों को पुनर्जीवित करेगा और किस प्रकार इसमें नीति और धर्म का ठहराव होगा?
सबसे बड़ी बात यह है कि आज के समाज में जिसके पास बुद्धि है, बल है तथा कुछ करने की क्षमता है वे इसके सुधार का प्रयत्न करते नहीं हैं और जो करना चाहते हैं उनके पास ताकत नहीं है । सन्त केवल मार्ग-दर्शन कर सकते हैं, किसी को जबर्दस्ती उस पर चला नहीं सकते। किन्तु आपके पास सामाजिक शक्ति है, आप सही मार्ग पर न चलने वालों को सामाजिक तौर पर किसी न किसी प्रकार से दंडित भी कर सकते हैं पर यह प्रयत्न करने पर ही तो किया जा सकता है। हम देखते हैं कि जिनके पास आज धन है वे ब्याह-शादी में लाखों रुपया लगाते हैं और पैसे का बड़ा भारी हिस्सा केवल अपने बड़प्पन का प्रदर्शन करने के लिए भी व्यर्थ खर्च कर देते हैं। और इसका परिणाम यह होता है कि साधारण स्थिति वाले व्यक्तियों को घर-द्वार बेचकर भी बच्चे-बच्चियों का ब्याह करना पड़ता है, और उस पर भी कृपणता का कलंक मस्तक पर लगाना पड़ जाता है।
इसका कारण क्या है ? यही कि समाज के व्यक्तियों में सुधार की भावना नहीं है, कोई बन्धन नहीं है और कोई विधान भी नहीं है । इसलिए बन्धुओ, आप लोगों का कर्तव्य है कि आप एकत्रित होकर ऐसी व्यवस्था करें, ऐसे नियम बनायें कि जिनके द्वारा सभी का हित हो और सभी निश्चितता की सांस ले सकें। यही नीति का मार्ग है और धर्म का भी। धर्म और नीति पर चलने वाले व्यक्ति इस जीवन में भी शान्ति प्राप्त करते हैं और मृत्यु के पश्चात् भी अमर होकर लोगों के दिलों पर राज्य करते हैं । एक उदाहरण से मैं इस बात को आपके सामने रखता हूँ ।
बादशाह और बुढ़िया ईरान में नौशेरवाँ नामक एक बादशाह हुआ था। वह बड़ा न्यायी और नीतिवान था। अपनी प्रजा को वह संतानवत् चाहता था तथा उनके सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानता था।
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