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शरीरं व्याधिमंदिरम्
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पर बंधुओ, हम किस प्रकार यह स्वीकार कर सकते थे । इन्जेक्शन नहीं दिया गया और फिर भी वे धीरे-धीरे स्वस्थ हो गये । हमने अजमेर की ओर विहार कर दिया तो वे मार्ग में आकर मिल गये ।
इसी प्रकार जैसे रात्रि में औषधि, जल या अन्य कोई भी वस्तु नहीं ली जाती है, उसी प्रकार सचित वस्तु का उपयोग साधु के लिये नहीं हो सकता । यथा - किसी वैद्य ने कह दिया- "अमुक झाड़ की ताजी पत्तियों का रस ले लो ।" तो क्या वह लिया जाएगा ? नहीं, साधु सचित्त वस्तुओं का प्रयोग कभी नहीं करने देगा ।
अभिप्राय यही है कि जो साधु इन सब बातों का ध्यान रखते हुए औषधि का अत्यल्प प्रयोग करते हैं तथा पूर्ण समतापूर्वक रोग जन्य वेदना को सहन करते हैं वे ही 'रोग परिषह' पर विजय प्राप्त करते हुए आत्म-कल्याण कर सकते हैं ।
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