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अलाभो तं न तज्जए
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वस्तुतः जो प्राणी सत्य को अपना लेता है वह संसार के समस्त दुर्गुणों से बच जाता है । असत्य अनेक पापों पर कुछ समय के लिए तो पर्दा डालने में समर्थ हो ही जाता है पर उस काल में भी कर्मों का जितना बन्धन होता है वह जीव को संसार-भ्रमण कराने का हेतु बनता है । अतः व्यक्ति को सत्य का महत्व समझते हुए उसे अन्तरात्मा से अपनाना चाहिए । सत्य किस प्रकार व्यक्ति को अनेक पापों से बचाता है, इसे एक उदाहरण से आपको बताने का प्रयत्न करता हूँ।
सत्य का प्रभाव एक सेठ बड़ा सज्जन, ईमानदार एवं धर्म में विश्वास करने वाला था। किन्तु दुर्भाग्य से उसके पुत्र ने अपने पिता के समस्त गुणों से विरोधी गुण अपना लिये । इकलौता पुत्र था और सम्पत्ति बहुत थी, अतः दुर्व्यसनों का शिकार बनते उसे देर नहीं लगी।
पिता ने जब अपने पुत्र को कुमार्ग पर जाते देखा तो बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा-किस प्रकार इसे मार्ग पर लाया जाय ? संयोगवश एक संत उस नगर में आए। सेठ बड़े भक्ति-भाव से उनके दर्शन करने गया । संत कुछ दिन ठहरे और सेठ उनकी सेवा में प्रतिदिन पहुँचता रहा । किन्तु पुत्र की ओर से जो दुःख उसके मन में था, वह सदा उसके चेहरे पर झलका करता था। . एक दिन सन्त ने उससे पूछ लिया-“सेठ जी ! मैंने सुना है कि आपके पास बहुत सम्पत्ति है, भरा-पूरा परिवार है और एक पुत्र भी है, फिर इन सभी सांसारिक सुखों के होते हुए भी आप सदा उदास एवं चिंतित क्यों दिखाई देते हैं ?"
सेठ ने संत की सहानुभूति पाकर अपनी चिन्ता का कारण उनसे कहा । वे बोले-"भगवन् ! सभी तरह का सुख मुझे हासिल है किन्तु मेरा पुत्र कुमार्गगामी बन गया है । कोई भी ऐसा कुव्यसन नहीं बचा जिसे उसने न अपनाया हो। यही चिन्ता मुझे सदा सताती रहती है कि मेरे मरने के बाद वह क्या करेगा और किस प्रकार वंश का नाम कलंकित करेगा ?"
संत सेठ की बात सुनकर मुस्कराये और बोले-"एक दिन उसे मेरे पास ले आना।"
सेठ ने उदास होकर कहा-"महाराज ! वह तो साधुओं की छाया से भी दूर भागता है, कहता है साधु अपने पास आने वाले व्यक्तियों को अनेक प्रकार के त्याग कराते रहते हैं।"
संत ने कहा- "तुम उससे कह देना कि मैं उसे किसी भी बात का त्याग नहीं कराऊँगा।"
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