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________________ १६२ आनन्द प्रवचन | छठा भाग प्रार्थना के पश्चात् वहाँ के पादरी ने समस्त उपस्थित व्यक्तियों को उपदेश दिया। अपने उपदेश में उन्होंने कहा-"प्रभु ईसा ईश्वर के दूत हैं। उनके बताये हुए मार्ग पर चलने से ही जीव नरक के भीषण दुःखों से बच सकता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति कर सकता है । संसार के समस्त कष्ट ईसामसीह की कृपा से टल जाते हैं । इस प्रकार पादरी ने उपदेश दिया और सभी को ईसा की शरण में आने का आग्रह किया। उस समय गिरजाघर में उपस्थित व्यक्तियों के बीच में एक स्त्री बैठी थी । वह ईसाई नहीं थी किन्तु बड़े सरल हृदय की थी। अतः पादरी का उपदेश सुनकर गद्गद् हो गई । जब और लोग वहाँ से चले गये तो वह स्त्री संकुचित होती हुई कुछ आगे बढ़ी और बड़ी नम्रता से पादरी से बोली "मैं ईसाई नहीं हूँ पर क्या नरक की यातना से परित्राण नहीं पा सकती ?" पादरी उस निश्छलहृदया स्त्री की बात सुनकर चिढ़ गया और अभिमान सहित बोला-"नहीं ! जो ईसाई धर्म को विधिवत नहीं अपनाते, उन पर प्रभु ईसु कभी कृपा नहीं करते ।" पादरी ने अपनी बात की ही थी कि अचानक आकाश में भयंकर गर्जना हुई और बिजली के द्वारा गिरजाघर में आग ही आग हो गई। गिरजाघर का भीतरी हिस्सा भी आग की लपेट में आ गया। आकाश में हुआ भीषण गर्जन और गिरजाघर से उठती आग को देखकर अनेक व्यक्ति दौड़कर वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने अन्दर रहे हए प्राणियों को बचाने का प्रयत्न किया । उस प्रयत्न के परिणामस्वरूप उस स्त्री को तो बचा लिया गया किन्तु पादरी को नहीं बचाया जा सका। वह प्रज्वलित अग्नि की गोद में समा चुका था। इस घटना को देखकर जो लोग अभी-अभी पादरी का यह उपदेश सुनकर गये थे कि प्रभु ईसु, ईसाई धर्म को न मानने वालों पर कभी कृपा नहीं करते, वे बड़े चकित हुए और विचार करने लगे कि गिरजाघर के पादरी तथा ईसाइयों के गौरव-रूप व्यक्ति पर गिरजाघर के अन्दर भी प्रभु ईसा ने कृपा नहीं की और जो ईसाई नहीं थी, वह सरल स्त्री कैसे बच गई ? किन्तु धीरे-धीरे उनकी समझ में आ गया कि पादरी अहंकारी था। अपने अहंकार के कारण उसने प्रभु ईसामसीह की महत्ता को भी धब्बा लगाया था। इसी कारण उसे अविलम्ब फल मिला है । दूसरे शब्दों में, उसका मिथ्याभिमान उसे ले डूबा है। बन्धुओ, ऐसे उदाहरण पढ़कर और सुनकर हमें ज्ञात होता है कि अभिमान का फल कभी अच्छा नहीं निकलता। व्यक्ति को कभी भी अपने कुल, ऐश्वर्य, रूप, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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