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अलाभो तं न तज्जए
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वह प्रदान न करे तो उस व्यक्ति पर क्रोध किया जाता है। पर साधु को इन दोनों स्थितियों में क्रोध करना वर्जित है। उसके लिए यही निर्देश है कि किसी वस्तु के लिए याचना करने पर अथवा भिक्षा के न मिलने पर भी साधु न तो अपने कर्मों को कोसे और न ही जिससे याचना की हो, उस पर ही क्रोध करे। क्योंकि क्रोध बड़ा तीव्र विष माना गया है जोकि करने वाले की भी हानि करता है और जिस पर किया जाता है उसका भी नुकसान करता है। एक गाथा में कहा गया है
कोहो वितंकि अमयं अहिंसा अगर कोई प्रश्न करे कि क्रोध क्या है, और अमृत क्या है ? तो उसका उत्तर इस गाथा के द्वारा दिया जा सकता है कि क्रोध विष है और अहिंसा अमृत ।
क्रोध के द्वारा व्यक्ति निविड़ कर्मों का बन्धन कर लेता है और अहिंसा के द्वारा अनेकानेक कर्मों की निर्जरा । इसीलिए साधु को मन, वचन एवं कर्म, इन तीनों में से किसी को भी हिंसा में प्रवृत्त नहीं होने देना चाहिए।
साधु किसी गृहस्थ के यहाँ भिक्षाचरी के लिए जाता है, उस समय अगर दो व्यक्ति साथ में भोजन कर रहे हों और एक तो साधु को देखकर गद्गद् होता हुआ अह्वान करता है-''महाराज पधारिये !" और दूसरा व्यक्ति मौन रह जाता है तो ऐसी स्थिति में भी भगवान ने आहार लेने का निषेध किया है । क्योंकि मौन उपेक्षा तथा निषेध का सूचक है, अतः उस स्थिति में आहार लेने से चुप रह जाने वाले व्यक्ति के मन में दुःख होगा।
___ इसी प्रकार एक दुकान दो व्यक्तियों के साझे में हो। साधु उस कपड़े की दुकान से कपड़े के लिए याचना करे पर एक भागीदार उस समय सहर्ष तैयार हो जाय तथा दूसरा मौन रहे तो उस हालत में भी साधु को कपड़ा नहीं लेना चाहिए। क्योंकि सम्भवतः बाद में उन दोनों मालिकों में कुछ खटपट हो जाय और कपड़ा देने वाले व्यक्ति को दुःख हो । किसी का दिल दुखाना भी हिंसा है।
तो साधु को न तो किसी अन्य के हृदय को क्लेश पहुँचाना चाहिए और न ही इच्छित वस्तु की अप्राप्ति से स्वयं क्लेश का अनुभव करना चाहिए। अगर वस्तु के अलाभ से मन को क्लेश का अनुभव होगा तो क्रोध का आविर्भाव भी हो जाएगा। साध को देने वाले के मौन रहने पर तो वस्तु का लेना अनुचित है ही, साथ ही दाता मौन न रहकर अगर कटु शब्दों से इंकार कर दे या अपमानजनक शब्द कहे तो भी अपने मन में खिन्नता, ग्लानि, क्लेश या दःख का अनुभव नहीं करना चाहिए।
__ जो सच्चे महापुरुष होते हैं वे तो अपकारी का भी उपकार करते हैं तथा स्वयं कष्ट पाने पर भी उसके देने वाले का सम्मान करते हैं ।
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