________________
याचना - याचना में अन्तर
१३७
कारावास का कष्ट सहना पड़ा, पुत्र के वियोग का कष्ट भोगना पड़ा तथा बचपन से ही कृष्ण को कंस के अत्याचारों का सामना करना पड़ा ।
इसलिए साधु को सदा अपने वचनों पर पूर्ण संयम रखना चाहिए तथा याचना करने पर भी अगर वस्तु उपलब्ध न हो तो पूर्ण समभाव रखते हुए अपने स्थान पर आना चाहिए । इसके विपरीत अगर वह अपने आप पर कन्ट्रोल नहीं रखता है तथा गृहस्थ के अप्रिय व्यवहार के उत्तर में स्वयं भी कटु व्यवहार कर जाता है तो अनेक कर्मों का भागी बनता है ।
भगवती सूत्र में बताया गया है कि गौतम स्वामी भगवान महावीर से प्रश्न पूछते हैं
"हे भगवन् ! भिक्षाचरी के लिए जाते समय मुनि कितने कर्म बाँधकर आता है ?"
भगवान उत्तर देते हैं- " गौतम ! गोचरी के लिए गया मुनि ७-८ कर्म बाँधकर आता है ।"
आपके दिल में शंका होगी कि ७-८ कर्म क्यों ? इसका कारण यह है कि अगर आयुष्य कर्म पहले बँध चुका है तो सात कर्म और नहीं तो आठ कर्म बाँधकर आता है ।
ये कर्म समभाव न रहने से, क्रोध आने से, द्वेष होने से और अभिमान जागृत रहने से बँधते हैं ।
गौतम स्वामी पुनः प्रश्न करते हैं कि उस समय किसी के कर्मों की निर्जरा भी होती है ?
भगवान उत्तर देते हैं - "हाँ, अगर गोचरी के लिये जाने पर किसी प्रकार की तकलीफ सामने आए, कोई संकट और विपत्ति आ पड़े, किन्तु उस समय साधु पूर्ण समभाव रखे तथा संयम में दृढ़ रहे तो ७-८ कर्मों की निर्जरा होती है ।"
इस प्रकार भिक्षाचरी में निर्जरा भी हो सकती है और कर्मबन्धन भी हो सकता है । समता रही तो निर्जरा और विषमता आ गई तो कर्मबन्धन होता है । इसलिये साधु को भगवान का आदेश है कि वह याचना करने जाने पर कैसा भी संकट क्यों न आए, पूर्ण समता से उसे सहन करे ।
श्री उत्तराध्ययन सूत्र के दूसरे अध्याय की उनतीसवीं गाथा में भिक्षा के सम्बन्ध में ही आगे कहा गया है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org