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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
कंस की पत्नी और ऐवंता मुनि की भाभी रानी जीवयशा उस समय अपने संसार पक्ष के देवर-मुनि को आया हुआ देखकर मजाक में कह बैठी-"वाह देवर जी ! बड़े मौके पर आए हो, आओ, हम मिलकर देवकी के विवाह के गीत गाएँ।" साथ ही उसने यह भी कह दिया
.. "तुम्हारे भाई तो राज्य करते हैं और तुम घर-घर भीख माँगते हो। इससे हमें लज्जा आती है।"
ऐवंता मुनि को अपनी भाभी की दोनों ही बातें खल गईं। वे अपने आप पर संयम नहीं रख पाये और क्रोध से कह बैठे-"जिस देवकी की शादी के तुम गीत गा रही हो, उसी देवकी का सातवाँ पुत्र तुम्हारे सुहाग को उजाड़ेगा और राज्य-पाट का तुम्हारा यह गर्व चूर-चूर हो जायेगा।"
ऐवंता मुनि के इस कथन से उनके कर्मों का बन्धन तो हुआ ही, साथ ही कंस अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव का शत्रु बन गया। उसने विवाह होते ही बहन-बहनोई को जेल में बन्द कर दिया और वर्षों तक कैद रखा। इतना ही नहीं, देवकी के छः पुत्रों का वध किया। सातवें पुत्र तो कृष्ण थे जो अपने जन्म के साथ ही विशेष पुण्य लेकर आए थे। उनके फलस्वरूप ही वसुदेव उन्हें पैदा होते ही टोकरी में डालकर जेल से बाहर निकले।
वैसे क्या भारी-भरकम तालों के और हथियारबन्द पहरेदारों के होते हुए कारागार से निकलना संभव था ? पर श्रीकृष्ण की जबर्दस्त पुण्यवानी के कारण ही दरवाजों के ताले स्वयं खुल गये, पहरेदार सो गये और उफनती हुई यमुना ने कृष्ण के चरणों का स्पर्श करते ही दो भागों में बँटकर मार्ग दे दिया।
कृष्ण गोकुल में नन्द के घर पहुँच गये और वहाँ बड़े हुए। किन्तु बचपन से ही उनके अद्भुत कारनामों की ख्याति मथुरा में कंस तक पहुंच गई और वह यह जानकर कि देवकी का सातवाँ पुत्र गोकुल में बड़ा हो रहा है, अत्यन्त क्षुब्ध और क्रोधित हुआ । उसे यही भय था कि कृष्ण के द्वारा मेरी मृत्यु की बात मुनि के द्वारा कही गई है अतः वह सत्य न हो जाय । इसलिए उसने कभी पूतना राक्षसी को और कभी किसी अन्य को बार-बार भेजकर कृष्ण को मरवा डालना चाहा।
किन्तु, 'जाको राखे सांइयाँ मार सके नहिं कोय ।' इस कहावत के अनुसार या स्वयं श्रीकृष्ण के वासुदेव का अवतार होने से उनकी मृत्यु नहीं हो सकी और कंस को उन्हीं के हाथों मरना पड़ा।
तो बन्धुओ, ऐवंता मुनि आहार के लिए गये थे किन्तु वहाँ भाभी के अप्रिय वचन सुनकर अपने ऊपर संयम नहीं रख सके और क्रोध में आकर भविष्यवाणी कर बैठे। इससे अपनी हानि तो उन्होंने की ही, साथ ही वसुदेव एवं देवकी को वर्षों
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